देश के प्रधानमंत्री से कोई नाराज हो जाए और वो भी इस हद तक कि उनके द्वारा शुभकामनाओं के तौर पर भेजे गए पुष्प गुच्छ भी वापस कर दे। इतना ही नहीं नाराजगी को दूर करने के लिए खुद प्रधानमंत्री को 24 घंटे में उनके घर आना पड़े और भोजन कर मन-मुटाव को दूर करना पड़े।
सुनने में ये थोड़ा अजीब लग सकता है लेकिन यहसच है। हम बात कर रहे हैं ख्यात पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक डॉ.वेद प्रताप वैदिक की। बेटी की शादी में प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी शामिल नहीं हुए तो डॉ.वैदिक उनसे नाराज हो गए थे। इसी तरह एक बार दुबई के शेख ने खजूर प्लेट में रखी तो डॉ.वैदिक ने खाने से इनकार कर दिया। वे रबड़ी के शौकीन थे और दूध का कड़ाव देख रूक जाते थे।
पहले जान लीजिए उनके अंतिम संस्कार और मौत के कारण के बारे में…
वरिष्ठ पत्रकार डॉ. वेदप्रताप वैदिक का मंगलवार को 78 वर्ष की आयु में निधन हो गया। उन्होंने दिल्ली स्थित निवास पर अंतिम सांस ली। परिवार से मिली जानकारी के अनुसार डॉ. वैदिक सुबह बाथरूम में फिसल कर गिर गए थे। इसके बाद उन्हें निकट के ही अस्पताल में ले जाया गया। जहां डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया।
अंतिम संस्कार लोधी क्रेमेटोरियम, नई दिल्ली में आज शाम 4 बजे होगा। इससे पहले सुबह नौ से दोपहर 1 बजे तक पार्थिव शरीर अंतिम दर्शन के लिए निवास स्थान गुड़गांव (242, सेक्टर 55, गुड़गांव) में रखा जाएगा। डॉ. वैदिक के परिवार में एक बेटा सुपर्ण और बेटी अपर्णा हैं। पत्नी डॉ.वेदवती वैदिक का निधन हो चुका है।
अब जानिए डॉ.वैदिक के किस्से जो उनके दोस्त एसएन गोयल ने दैनिक भास्कर को बताए
रबड़ी के शौकीन, दूध का कड़ाव देख रूक जाते थे
डॉ.वेद प्रताप वैदिक बहुत ही सिम्पल भोजन करते थे। करेला का ज्यूस पीते थे लेकिन मीठे में उन्हें रबड़ी बहुत ज्यादा पसंद थी। इंदौर आने पर उन्हें सराफा जाना बहुत पसंद था। दोस्तों के साथ बैठकर के मीटिंग करना, गपशप करना उन्हें अच्छा लगता था।
जेल रोड से निकले या छावनी के यहां से दूध के कड़ाव लगे है तो वे दोस्तों के साथ वहां रूक जाते थे। छावनी में चौराहे पर लक्ष्मीनारायण दूध वाले के यहां कई बार रात में 11-12 बजे उन्होंने दोस्तों के साथ दूध पीया।
बेटी की शादी में नहीं पहुंचे पीएम वाजपेयी तो डॉ.वैदिक ने उनका बुके लौटा दिया
गोयल ने बताया कि बात 2001 की है। जब डॉ.वैदिक ने 2001 में अपनी बेटी अपर्णा की शादी की तारीख प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से बात करके तय की थी। कंफर्म था कि वाजपेयी शादी में शामिल होंगे।
रिसेप्शन की रात डॉ. वैदिक गेट पर खड़े थे। तभी वाजपेयी के एडीसी आए और कहा कि वो प्रधानमंत्रीजी की तरफ से आए हैं। पीएम सर ने शुभकामनाएं भेजी हैं। इस पर डॉ.वैदिक ने कहा कि आप भोजन के बाद मुझ से मिलकर जाइएगा। जब एडीसी लौटने लगे तो डॉ.वैदिक ने कहा कि अटलजी से कह दीजिएगा कि उन्होंने बुके लौटा दिया है।
दुबई के शेख ने खजूर प्लेट में रखी तो डॉ.वैदिक ने खाने से इनकार कर दिया
डॉ.वैदिक अकसर दुबई जाया करते थे। पहली बार जब शेख ने किसी काम के सिलसिले में उन्हें दुबई बुलाया। शेख ने होटल के पर्सनल रूम में उन्हें ठहराया था, जिसका लाखों में किराया है। दूसरे दिन सुबह शेख के साथ उनका भोजन था।
शेख ने अन्य मेहमानों की टेबल दूर लगाई जबकि डॉ.वैदिक को पास बैठाकर भोजन कराया। डॉ.वैदिक ने शेख से कहा कि मैं तो वेजिटेरियन हूं। इस पर शेख ने कहा कि मुझे पता है इसलिए मैंने आपके लिए खजूर बुलवाए हैं। यह कहते हुए शेख ने अपने हाथ से खजूर उनकी प्लेट में रख दिए।
लेकिन डॉ.वैदिक ने वो खजूर खाने से इंकार कर दिया। कहा आपने नॉनवेज के हाथ से ही मुझे खजूर दे दिए। मैं ये नहीं खा पाऊंगा। इसके बाद दूसरी खजूर मंगवाकर डॉ.वैदिक को परोसी गई।
पाकिस्तान की पीएम से हत्या के 15 मिनट पहले की बात, उनकी मजार पर जाने वाले एकमात्र भारतीय
पाकिस्तान की पहली महिला प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो की 27 दिसंबर 2007 की शाम हत्या कर दी गई थी। घटना से करीब 15-20 मिनट पहले डॉ.वैदिक से बेनजीर भुट्टो ने बात की थी। भुट्टो ने वैदिक से कहा था कि पाकिस्तान में ‘मेरा विरोध हो रहा है। सब मेरे खिलाफ चल रहे हैं। हो सकता है मुझे कभी भी कुछ हो जाए। फिर आधे घंटे बाद ही फोन आया की डेथ हो गई है।
प्रोफेसर ने डॉ.वैदिक से कहा आप क्लास लीजिए मैं स्टूडेंट बनकर बैठता हूं
एक बार क्रिश्चियन कॉलेज में फिलासफी की क्लास चल रही थी। प्रोफेसर क्लास में पढ़ा रहे थे। किसी विषय को लेकर प्रोफेसर स्टूडेंट को समझाने लगे। इस पर डॉ.वैदिक ने उन्हें टोक दिया और कहा कि जैसा आप कह रहे हैं वैसा नहीं है। जब उन्होंने कंटेंट के साथ प्रोफेसर को बताया तो प्रोफेसर ने कह दिया कि इस क्लास में तो मुझे स्टूडेंट बनकर बैठना पड़ेगा।
डॉ.वैदिक ने रेल मंत्री से बात कर लगवाया ट्रेन में एसी कोच
डॉ.वैदिक गुस्सा नहीं करते थे लेकिन एक बार इंदौर से वो दिल्ली जा रहे थे। उनका रिजर्वेशन एसी कोच में था। लेकिन ट्रेन के चलने के पहले ही कोच में खराबी आ गई। करीब 50 लोगों का जाना कैंसिल हो गया। स्टेशन मैनेजर ने कोच को हटाकर इसके यात्रियों का रिजर्वेशन कैंसिल कर दिया।
तब डॉ. वैदिक ने स्टेशन मास्टर के पास जाकर विरोध किया। कहा- दूसरा कोच लगाइये। लेकिन स्टेशन मास्टर ने मना कर दिया। तब उन्होंने सीधे तत्कालीन रेलमंत्री स्व. रामविलास पासवान को फोन लगा दिया। उनके कहने के बाद ट्रेन में दूसरा कोच लगा। इसके बाद ही ट्रेन दिल्ली रवाना की गई।
डॉ.वेद प्रताप वैदिक के छोटे भाई श्वेतकेतु जो इंदौर में रहते हैं।
जब छोटे भाई को डॉ.वैदिक ने ईंट फेंककर मारी थी
छोटे भाई श्वेतकेतु वैदिक बताते हैं कि ‘एक बार मैं 5-6 साल का था। मेरी एक शरारत पर उन्होंने ईंट फेंककर मार दी थी। मेरी नाक पर उस चोट का निशान आज भी है। बचपन से ही घर में अनुशासन था। बड़े भाई डॉ.वैदिक विदेश जाते थे लेकिन हमेशा शराब, मांस, अंडा इन सारी चीजों से दूर रहे। उनका खान-पान बहुत ही सादा था लेकिन रबड़ी उन्हें बहुत पसंद थी।
छावनी में बाड़े में वैदिकजी का परिवार 1910 से 1970 तक रहा। वहां बहुत सारे परिवार रहा करते थे। बाड़े में सभी लोगों का बहुत प्रेम और भाईचारे का व्यवहार था।’
पिछले महीने आए थे इंदौर
डॉ.वैदिक पिछले महीने दुबई की यात्रा पूरी कर 12 फरवरी को भतीजे शुभम की शादी में शामिल होने के लिए इंदौर आए थे। यहां वे 3-4 दिन रुके थे। परिवार के साथ उन्होंने वक्त बिताया था। उनके दोस्त एसएन गोयल ने बताया कि वे अगले महीने अप्रैल में इंदौर आने वाले थे।
उद्योगपतियों के साथ मीटिंग लेने वाले थे। ब्रोशर भी छपवाकर रखे हैं। रवींद्र नाट्यगृह में एक लेक्चर भी उनका रखवाते लेकिन सारे सपने अब अधूरे रह गए। मई में दिव्यांगजनों के परिचय सम्मेलन में भी मुख्य अतिथि के रूप में उन्हें इंदौर में आमंत्रित किया गया था।
इंदौर में उनके पुराने दोस्तों में कैलाश पलोड़, प्रो.सरोज कुमार, आरडी जैन, राधेश्याम पाठक, महेश जोशी, विक्रम वर्मा ये उनके खास थे। लोगों ने मिलना उन्हें बहुत पसंद था। वे एक अच्छे डिबेटर थे। इंदौर में क्रिश्चियन कॉलेज से उन्होंने बीए, एमए किया लेकिन वे प्रो.सरोज कुमार को खुद से बेहतर डिबेटर मानते थे। एक बार दोनों में डिबेट भी हुई और प्रो.सरोज कुमार फर्स्ट और डॉ.वैदिक सेकंड आए।’
छोटे से बाड़े से निकलने वाले वैदिकजी से सरकारें डरती थीं : श्रवण गर्ग
डॉ. वैदिक के साथ बचपन से ही साथ रहे वरिष्ठ पत्रकार श्रवण गर्ग ने दैनिक भास्कर से उनसे जुड़ी यादें शेयर की…। वैदिकजी मुझसे ढाई-तीन साल बड़े थे। उनका जन्म इंदौर के एक बाड़े में हुआ था जहां अलग-अलग परिवारों के 100 से ज्यादा लोग रहा करते थे। मेरा भी जन्म इसी बाड़े में हुआ था जहां कॉमन बाथरूम और टॉयलेट हुआ करते थे। नहाने के लिए बारी का इंतजार करना पड़ता था। इस तरह की साधारण जिंदगी से शुरू कर उन्होंने पूरी दुनिया में अपनी पहचान कायम की। भारत में कोई भी सरकारें रहीं हो, वे उनसे डरती थीं। इसलिए उनका कभी ठीक से इस्तेमाल नहीं किया। सरकारों को लगता था कि यह शख्स उन पर भारी पड़ता है।