नई दिल्ली: कांग्रेस सांसद राहुल गांधी के लंदन में दिए गए बयान पर पिछले हफ्ते से एक दिन भी संसद नहीं चल पाई। भारत में ‘लोकतंत्र पर क्रूर हमले’ के राहुल के बयान पर बीजेपी हमलावर है। वह राहुल गांधी से बिना शर्त माफी की मांग कर रही है। BJP सांसद निशिकांत दुबे ने संसद में राहुल गांधी के खिलाफ विशेष समिति बनाकर उनकी सदस्यता खत्म करने की मांग की है। प्रश्न यह उठता है कि क्या ऐसे में किसी सांसद की सदस्यता जा सकती है? क्या है सांसद की सदस्यता खत्म करने का नियम? BJP सांसद निशिकांत दुबे ने लोकसभा में प्रक्रिया और कार्य संचालन के नियम 223 के तहत लोकसभा स्पीकर ओम बिरला को पत्र लिखा है। उन्होंने हवाला दिया कि 2005 में पैसे लेकर संसद में सवाल पूछने के मामले में संसद की विशेष समिति ने संसद की गरिमा को चोट पहुंचाने के आरोप में 11 सांसदों की सदस्यता खत्म कर दी थी। इसे सुप्रीम कोर्ट ने भी सही ठहराया था।
लोकसभा के पूर्व महासचिव और संविधान विशेषज्ञ पी. डी. टी आचार्य कहते हैं बहुत ही कम मामले में किसी संसद सदस्य की सदस्यता जाती है। पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की सदस्यता भी एक बार चली गई थी। 1977 में इंदिरा गांधी चुनाव हार गई थीं। उसके बाद वह चिकमंगलूर से चुनाव जीत कर आईं, लेकिन जनता पार्टी की सरकार ने इमरजेंसी को लेकर उनके खिलाफ विशेषाधिकार समिति बनाई। समिति ने उन्हें दोषी ठहराया और उनकी सदस्यता चली गई। उन्हें सजा भी मिली। इंदिरा गांधी पर आरोप था कि इमरजेंसी के दौरान उन्होंने अधिकारियों को संसद को सूचना देने से रोका।
पूर्व लोकसभा सचिव और संविधान विशेषज्ञ एस. के. शर्मा भी मानते हैं कि किसी सांसद की सदस्यता जाना दुर्लभ है। नियम 223 संसद सदस्य को किसी सदस्य या समिति के विशेषाधिकार के उल्लंघन के मामले में संसद में स्पीकर की सहमति (नियम 22 के तहत) के साथ सवाल उठाने की इजाजत देता है। इसी नियम के तहत BJP सांसद निशिकांत दुबे ने यह मामला उठाया है। ऐसे मामले में आगे की जांच के लिए विशेषाधिकार समति बनाई जाती है। समिति कोर्ट की तरह सुनवाई करती है। दोनों पक्षों को सुनती है। अपनी रिपोर्ट तैयार करती है।
निशिकांत दुबे का राहुल गांधी पर आरोप
BJP नेता निशिकांत दुबे ने राहुल गांधी पर लोकसभा अध्यक्ष को सूचित किए बिना पीएम नरेंद्र मोदी के खिलाफ निराधार, बदनामीपूर्ण और असंसदीय दावे करके नियम 352 के उल्लंघन का भी आरोप लगाया है। संसदीय नियमावली के नियम 352(2) के अनुसार, एक सांसद लोकसभा अध्यक्ष को पूर्व सूचना देकर और उनकी अनुमति से ही सदन के किसी भी सदस्य के खिलाफ टिप्पणी कर सकता है।