नई दिल्ली: सहारा ग्रुप (Sahara Group) की कंपनियों में पैसा फंसाकर बैठे देशभर के करोड़ों निवेशकों के लिए आखिरकार अच्छी खबर आ गई है। सरकार ने कहा है कि उनका पैसा अगले नौ महीने में लौटा दिया जाएगा। सुप्रीम कोर्ट का आदेश आने के बाद सरकार ने बुधवार को कहा कि सहारा ग्रुप की चार सहकारी समितियों के 10 करोड़ निवेशकों को उनका पैसा नौ माह में लौटाया जाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया है कि 5,000 करोड़ रुपये की राशि को सहारा-सेबी रिफंड खाते (Sahara-SEBI Reund Account) से केंद्रीय पंजीयक को स्थानांतरित किया जाए। कोर्ट ने केंद्र सरकार की उस याचिका को स्वीकार कर लिया जिसमें जमाकर्ताओं को भुगतान के लिए सहारा ग्रुप द्वारा भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (SEBI) के पास जमा कराए गए 24,000 करोड़ रुपये में से 5,000 करोड़ रुपये केंद्रीय पंजीयक को स्थानांतरित करने का अनुरोध किया गया था।
केंद्र ने एक जनहित याचिका में न्यायालय से यह आवेदन दिया था। जनहित याचिका पिनाकी पाणि मोहंती नाम के व्यक्ति ने दायर की थी और इसमें विभिन्न चिट फंड कंपनियों तथा सहारा क्रेडिट कंपनियों में निवेश करने वाले जमाकर्ताओं को इस राशि से भुगतान करने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया था। न्यायमूर्ति एमआर शाह और न्यायमूर्ति सीटी रविकुमार की पीठ ने कहा कि सहारा ग्रुप की सहकारी समितियों द्वारा ठगे गए जमाकर्ताओं के बीच इस राशि का वितरण किया जाना चाहिए। इसमें कहा गया कि इस पूरी प्रक्रिया की निगरानी शीर्ष अदालत के न्यायाधीश न्यायमूर्ति आर सुभाष रेड्डी करेंगे। सहकारिता मंत्रालय ने अपने बयान में कहा कि उच्चतम न्यायालय ने यह ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए सहारा समूह की चार सहकारी समितियों के 10 करोड़ निवेशकों को सहारा-सेबी रिफंड खाते से वापस करने का निर्देश दिया है। उसने कहा कि न्यायमूर्ति रेड्डी नौ महीने में इस भुगतान प्रक्रिया को पूरा करेंगे।
क्या है मामला
करोड़ों निवेशकों की जीवनभर की गाढ़ी कमाई का पैसा लंबे समय से सहारा ग्रुप की चार कोऑपरेटिव सोसाइटीज में पड़ा है। अपने पैसों को पाने के लिए उन्हें दर-दर की ठोकरें खानी पड़ रही है। साल 2012 में सुप्रीम कोर्ट ने सहारा हाउसिंग (Sahara Housing) और सहारा रियल एस्टेट (Sahara Real Estate) को 25,781 करोड़ रुपये डिपॉजिट करने का ऑर्डर दिया था। इन कंपनियों ने मार्च 2008 और अक्टूबर 2009 में करोड़ों निवेशकों से यह राशि जुटाई थी। इन दो कंपनियों ने 15,569 करोड़ रुपये जमा कराए जिस पर 9,410 करोड़ रुपये ब्याज बना है। इस तरह सहारा-सेबी फंड में कुल 24,979 करोड़ रुपये जमा थे। कुछ लोगों के रिफंड के बाद इस अकाउंट में अब भी 23,937 करोड़ रुपये जमा हैं।
मिनिस्ट्री ऑफ कोऑपरेशन की तरफ से पेश एडिशनल सॉलीसीटर जनरल एश्वर्य भाटी ने पिछली सुनवाई में कोर्ट को बताया था कि चार मल्टी-स्टेट कोऑपरेटिव्स सहारा क्रेडिट कोऑपरेटिव सोसाइटी, सहारा यूनिवर्सिल मल्टीपर्पज सोसाइटी, हमारा इंडिया क्रेडिट कोऑपरेटिव सोसाइटी और स्टार्स मल्टीपर्पज कोऑपरेटिव सोसाइटी ने नौ करोड़ से अधिक निवेशकों से 86,673 करोड़ रुपये इकट्ठा किए थे और इसमें से 62,643 करोड़ रुपये एंबी वैली में निवेश किए थे। दिल्ली हाई कोर्ट के स्पेसिफिक ऑर्डर के बावजूद सहारा ग्रुप कोऑपरेटिव सोसाइटीज ने इस मामले में कोई सहयोग नहीं दिया और निवेशकों के पैसों के रिफंड और दावों के समाधान की प्रक्रिया को खारिज किया है।
कंपनियों में साठगांठ
सहारा ग्रुप की कंपनियों की आपस में साठगांठ थी। उन्होंने निवेशकों से मिले पैसों की लॉन्ड्रिंग की और उसे एक एसेट में लगाया। सहारा की कंपनियों और योजनाओं में देशभर में करोड़ों लोगों ने निवेश किया था। सहारा ने आईपीओ लाने की योजना बनाई थी। सहारा ने जब सेबी से IPO के लिए आवेदन दिया तो सेबी ने उससे DRHP यानी कंपनी का पूरा बायोडेटा मांग लिया। जब सेबी ने इसकी जांच की तो इसमें काफी गड़बड़ियां मिलीं। इसके बाद सेबी का सहारा इंडिया पर शिकंजा कसता चला गया। सहारा पर आरोप लगे कि उसने अपने निवेशकों का पैसा गलत तरीके से इस्तेमाल किया।
सेबी ने 24 नवंबर, 2010 को सहारा ग्रुप के किसी भी रूप में पब्लिक से पैसा जुटाने पर पाबंदी लगा दी थी। आखिरकार यह मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा और कोर्ट ने सहारा ग्रुप को निवेशकों के पैसे 15 फीसदी सालाना ब्याज के साथ लौटाने का आदेश दिया। यह रकम 24,029 करोड़ रुपये थी। साल 2012 में सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि सहारा समूह की कंपनियों ने सेबी कानूनों का उल्लंघन किया। कंपनियों ने कहा कि उन लाखों भारतीयों से पैसे जुटाए गए जो बैंकिंग सुविधाओं का लाभ नहीं उठा सकते थे। सहारा ग्रुप की कंपनियां निवेशकों को भुगतान करने में विफल रहीं, तो अदालत ने रॉय को जेल भेज दिया। वह लगभग दो साल से अधिक का समय जेल में काट चुके हैं। छह मई 2017 से वह पेरोल पर हैं। पहली बार उन्हें परोल मां के अंतिम संस्कार में शामिल होने के नाम पर मिला था, जिसे बाद में तब बढ़ा दिया गया था।
अब तक रिफंड
सरकार की तरफ से संसद में दी गई जानकारी के मुताबिक सेबी को 81.70 करोड़ रुपये की कुल मूल राशि के लिए 53,642 ओरिजिनल बॉन्ड सर्टिफिकेट/पास बुक से जुड़े 19,644 आवेदन मिले हैं। सेबी ने इनमें से 138.07 करोड़ रुपये की कुल राशि 48,326 ओरिजिनल बॉन्ड सर्टिफिकेट/पासबुक वाले 17,526 एलिजिबल बॉन्डहोल्डर्स को रिफंड किया है। इसमें 70.09 करोड़ रुपये मूलधन और 67.98 करोड़ रुपये का ब्याज शामिल है। बाकी आवेदन बंद कर दिए गए हैं। इसकी वजह यह है कि सहारा की कंपनियों की तरफ से जो दस्तावेज दिए गए थे, उनमें उनका रेकॉर्ड नहीं मिल पाया। साथ ही कई बॉन्डहोल्डर्स ने सेबी के सवालों का जवाब नहीं दिया, इसलिए उनके आवेदन को बंद कर दिया गया।