भारत को रखना होगा कुछ बातों का ध्यान
न्यूज एजेंसी ब्लूमबर्ग ने भी आबादी को आर्थिक प्रगति का अग्रदूत बनाने के लिए कुछ महत्वपूर्ण बिंदु गिनाए हैं। एजेंसी ने कहा है कि भारत को अगर अनुमानों पर खरा उतरना है तो उसे चार बड़े मोर्चों- शहरीकरण (urbanisation), बुनियादी ढांचा (infrastructure), कौशल विकास (up-skilling) के साथ-साथ कार्यबल का विस्तार (broadening labour force) और विनिर्माण गतिविधियों में तेजी (boosting manufacturing) पर ध्यान देना होगा। ब्लूमबर्ग के मुताबिक, भारत ने अगर इन मोर्चों पर अपेक्षित प्रगति कर ली तो उसे आबादी का लाभ उठाने और वैश्विक अर्थव्यवस्था को नया आकार देने से कोई नहीं रोक सकता। ब्लूमबर्ग इकोनॉमिक्स में सीनियर इंडिया इकॉनमिस्ट अभिषेक गुप्ता कहते हैं, ‘देश युवा है, अंग्रेजी बोलने वाला है और बढ़ता लेबर फोर्स सरकार के मेक इन इंडिया अभियान को आगे बढ़ा ही रहा है। वैश्विक राजनीतिक-आर्थिक परिस्थितियां भी भारत के पक्ष मे हैं।’
शहर तो बहुत बस रहे, लेकिन सुविधाएं भी बढ़ानी होंगी
भारत को दुनिया में अपनी सबसे अधिक आबादी का लाभ उठाना है तो शहरीकरण पर बहुत व्यवस्थित और तेज गति से काम करना होगा। इंटरनैशनल एनर्जी अथॉरिटी के मुताबिक, वर्ष 2040 तक भारत के शहरों की आबादी बढ़कर 27 अरब हो जाएगी। देश के शहरों की बढ़ती चकाचौंध अभी से दिख रही है। एक बड़े डेवलपर ने हाल ही में राजधानी दिल्ली से सटे गुरुग्राम में करीब 80 अरब रुपये के लग्जरी होम्स बेचे। शहरों में नई-नई गगनचुंबी इमारतें बन रही हैं और गांवों की बड़ी आबादी रोजगार की तलाश में शहरों का रुख कर रही है। लेकिन यहां सार्वजनिक सेवाओं की हालत अच्छी तो दूर, संतोषजनक भी नहीं है। राजधानी दिल्ली में कूड़ों के पहाड़ खड़े हैं और वायु प्रदूषण के स्थायी समस्या बनी हुई है। कार्नेगी एंडोमेंट फॉर इंटरनैशनल पीस के सीनियर फेलो युकोन हुआंग (Yukon Huang) के मुताबिक, भारत को अपने शहरों को आधुनिक और आरामदेह बनाना है तो उसे चीन और साउथ कोरिया के रास्ते पर चलना पड़ेगा।
इन्फ्रास्ट्रक्चर बनाने की बढ़ानी होगी रफ्तार
बढ़ते शहरीकरण से आर्थिक प्रगति का रास्ता तभी तय होगा जब बुनियादी सुविधाओं पर बड़े पैमाने पर काम हो। 2014 में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से इस दिशा में बहुत उत्साहजनक काम हो भी रहा है। मसलन, 2014 से अब तक घरेलू हवाई यात्रियों की संख्या लगभग दोगुनी हो गई है और देशभर में हाइवे नेटवर्क डेढ़ गुना से भी ज्यादा हो गया है। तकनीक के क्षेत्र में तो भारत पीएम मोदी के नेतृत्व में कमाल ही कर रहा है। अभी डिजिटल इन्फ्रास्ट्रक्चर के मामले में भारत, दुनिया के सबसे उन्नत देशों में शुमार है। आधार, जीएसटी, यूपीआई जैसी उपलब्धियां बहुत बड़ी हैं। लेकिन कई मोर्चों पर चीन अब भी आगे है। मसलन, भारत में फोन कॉल और इंटरनेट बहुत सस्ता है, लेकिन इंटरनेट यूज के मामले में चीन अब भी बहुत आगे है। इसके साथ ही, हवाई और जल मार्ग से माल ढुलाई के मामले में भी भारत अभी बहुत पीछे है। एशिया के बिजनस लीडर्स के लिए ग्रुप फोरम चलाने वाली संस्था IMA एशिया के इकनॉमकि डायरेक्टर प्रियांक किशोर कहते हैं, ‘दशकों तक पर्याप्त निवेश नहीं होने के कारण भारत में इन्फ्रास्ट्रक्चर का विकास नहीं हो सका था। इस कारण सिस्टम कमजोर हो गए, माल ढुलाई की जरूरत से ज्यादा निर्भरता सड़कों तक सीमित रह गई। दूसरी तरफ, कौशल विकास पर ध्यान नहीं देने से कुशल कर्मचारियों की भी काफी कमी रही।’
डिग्रियों से काम नहीं चलेगा, कौशल भी चाहिए
कहा जाता है कि भारत की यूनिवर्सिटियां बेरोजगारों की फैक्ट्री हैं। डिग्रियां तो मिलती हैं, लेकिन कौशल नहीं मिलता। इस कारण दुनियाभर की कंपनियों की शिकायत रहती है कि भारत में उन्हें कुशल कर्मचारी नहीं मिलते। कंपनियों को एडवाइजरी देने वाली संस्था व्हीबॉक्स (Wheebox) के मुताबिक, देश में आधे ग्रैजुएट इस लायक नहीं हैं कि उन्हें नौकरी पर रखा जा सके। इसका असर देश की बेरोजगारी दर में दिखता है जो अभी 7 प्रतिशत पर है। लेकिन अच्छी बात है कि मोदी सरकार ने इस वर्ष के बजट में शिक्षा पर खर्च 13 प्रतिशत बढ़ाकर 1.1 लाख करोड़ रुपये कर दिया है। इसका मकसद डिजिटल एजुकेशन को बढ़ावा और एजुकेशन को विस्तार देना है। हालांकि, महिलाओं की शिक्षा के मामले में अब भी बहुत कुछ करना बाकी है। वर्ल्ड बैंक के मुताबिक, 2010 से 2020 के बीच भारत में कामगार वर्ग में महिलाओं की हिस्सेदारी 26 प्रतिशत से घटकर 19 प्रतिशत हो गई। भारत में महिलाओं की आबादी में हिस्सा 48% है, लेकिन जीडीपी में उनकी भागीदारी सिर्फ 17% है। चीन में यह आंकड़ा 40 प्रतिशत है। ब्लूमबर्ग इकोनॉमिक्स के हालिया एनालिसिस में कहा गया है कि अगर भारत ने इस दिशा में काम किया तो 2050 तक देश की जीडीपी में करीब 33 प्रतिशत की उछाल आ सकती है।
फिर मिला मैन्युफैक्चरिंग हब बनने का मौका
चार दशक पहले चीन और भारत मूल रूप से कृषि आधारित अर्थव्यवस्था हुआ करती थी। लेकिन जब पश्चिमी जगत खिलौन से लेकर टीवी और औजारों तक के उत्पादन की फैक्ट्रियां दूसरे देशों में शिफ्ट करने लगा तो चीन ने उस मौके को हथिया लिया जबकि भारत इस प्रतिस्पर्धा में चूक गया। आज चीन की इकॉनमी में मैन्युफैक्चरिंग की हिस्सेदारी 25 प्रतिशत से भी ज्यादा है जबकि भारत में सिर्फ 14 प्रतिशत। लेकिन अमेरिका और चीन के बीच बढ़ती खींचतान ने भारत को फिर से मौके का द्वार खोल दिया है। भारत इस मौके को लपकने को आतुर भी दिख रहा है। ऐपल की तीन प्रमुख ताइवानी सप्लायरों ने उत्पादन और निर्यात बढ़ाने के लिए भारत की सहारा लिया है। ऐपल अपना करीब 7 प्रतिशत आईफोन भारत में बना रहा है जो 2021 से एक प्रतिशत ज्यादा है। फिर भी कुछ दिक्कते हैं। जैसे भारत में श्रम कानूनों को आसान बनाना बाकी है। बांग्लादेश या वियतनाम ने जिस पैमाने पर और जितने सुविधाजनक इंडस्ट्रियल पार्क्स बनाए, उस मामले में भारत सफल नहीं रहा।
बहुत सारी उम्मींदें, थोड़ा सा डर भी
शहरीकरण, बुनियादी ढांचा, मानव विकास और विनिर्माण जैसे क्षेत्र में उन्नति दशकों में संभव हो पाती है। 2050 तक भारत की आबादी 25 करोड़ और बढ़ेगी और तब यह 1.67 अरब लोगों का देश हो जाएगा। आज भारत में प्रति 10 हजार आबादी पर सिर्फ पांच हॉस्पिटल बेड हैं। चीन में यह आंकड़ा करीब आठ गुना है। एक्सपर्ट्स का कहना है कि भारत को आज के चीन का स्तर पाने में ही दशकों लग जाएंगे। भारत की आबादी में युवाओं का बड़ा हिस्सा भी बहुत लंबे वक्त तो रहेगा नहीं। संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक, 2047 से भारत की आबादी घटने लगेगी और वर्ष 2100 तक आते-आते यह 1 अरब तक आ जाएगी। संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक ही, 2050 में चीन की आबादी 1.3 अरब होगी। भारत अगर 7 प्रतिशत के आसपास की रफ्तार से आर्थिक वृद्धि हासिल करता रहा तो 2030 तक यह जर्मनी और जापान को पीछे छोड़कर दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा।