नई दिल्ली : जिन लोगों ने होम लोन ले रखा है, उन्हें इंतजार है कि ब्याज दरों में निकट भविष्य में कमी कब आएगी। पिछले कुछ समय के दौरान इनकी ईएमआई या लोन की अवधि बढ़ा दी गई है। पिछले साल मई के बाद से अब तक रिजर्व बैंक ने आम बैंकों के लिए अपनी पॉलिसी ब्याज दरों में 250 बेसिस पॉइंट्स की बढ़ोतरी की है। आम आदमी यूं समझे कि उसके लिए यह बढ़ोतरी ढाई फीसदी है। इससे फिक्स्ड डिपॉजिट कराने वाले लोगों को थोड़ी राहत मिली, लेकिन जिन लोगों ने लोन ले रखा है, उनके लिए मुश्किल बढ़ चुकी है।
क्यों हुई बढ़ोतरी : ब्याज दरों में बढ़ोतरी के पीछे रिजर्व बैंक का मकसद था महंगाई पर काबू पाना। 2022 में महंगाई दर छह फीसदी के पार चली गई थी। रिजर्व बैंक चाहता है कि महंगाई दर ज्यादा से ज्यादा छह फीसदी रहे। लगातार ब्याज दर बढ़ाने से बाजार में मनी सप्लाई कम होती है, जिससे महंगाई पर काबू की उम्मीद रहती है। मार्च में रिटेल सेक्टर में महंगाई दर 5.66 फीसदी पर आ गई। 2023 में यह स्थिति पहली बार आई।
कटौती कब होगी : अप्रैल में जब रिजर्व बैंक की मॉनेटरी पॉलिसी कमिटी की मीटिंग हुई, तो उसने ब्याज दरों में बढ़ोतरी रोकने का फैसला कर लिया। रिजर्व बैंक का अनुमान है कि इस साल महंगाई दर 5.2 फीसदी के करीब रह जाएगी। कई अर्थशास्त्रियों ने भी अनुमान लगाया है कि आगे चलकर महंगाई नरम होगी। साथ ही ग्रोथ में कुछ गिरावट आएगी। इन हालात में दिसंबर के अंत तक रिजर्व बैंक की मॉनेटरी पॉलिसी कमिटी ब्याज दरों में कमी कर सकती है।
महंगाई अकेली नहीं : भारत के सामने सिर्फ महंगाई की चुनौती नहीं हैं। अमेरिका और यूरोप में बैंकिंग सेक्टर में उथल-पुथल मची है। मामला गंभीर निकला तो भारत की इकॉनमी पर भी इसकी आंच आ सकती है। कच्चे तेल के दाम में लगातार उतार-चढ़ाव देखने को मिल रहा है। अगर कच्चे तेल के भाव बढ़े तो महंगाई फिर आग लगा सकती है। भारत की अर्थव्यवस्था की विकास दर भले ही दुनिया के मुकाबले काफी तेज दिख रही है, लेकिन अब बढ़ोतरी थमने के संकेत मिलने लगे हैं।
साइड इफेक्ट देखें : महंगाई पर काबू पाने के लिए ब्याज दरों को बढ़ाने का फॉर्म्युला हमेशा के लिए नहीं लागू किया जा सकता है। ब्याज दरें बढ़ाने पर खपत में कमी आएगी और इससे देश की इकॉनमी में मंदी का खतरा होता है। भारत में भी खपत घटने के संकेत मिल रहे हैं और निजी सेक्टर के निवेश की स्थिति कमजोर दिख रही है। अमेरिकी इकॉनमी की हालत कुछ मोर्चों पर कमजोर दिख रही है। रिटेल बिक्री और इंडस्ट्री के उत्पादन में कमी साफ दिख रही है। खुद फेडरल रिजर्व के दस्तावेजों से इस साल अमेरिका में मंदी आने के संकेत मिल रहे हैं।
मिसाल सामने है : हाल में सबसे खतरनाक संकेत तब दिखा, जब अमेरिका में सिलिकॉन वैली बैंक का कारोबार चौपट हो गया। ब्याज दरों में बढ़ोतरी से बाजार में जो नए बॉण्ड आए, उन पर ज्यादा रिटर्न मिलने लगा। इससे बैंक के पुराने बॉण्ड्स में निवेश की वैल्यू कम हो गई। इसी दौर में सिलिकॉन वैली बैंक को जमाकर्ताओं को रकम लौटाने के लिए अपना निवेश भुनाना पड़ गया, जो उसके लिए नुकसानदेह साबित हुआ। अमेरिका के कुछ और बैंक कमजोर ग्राउंड पर खड़े दिख रहे हैं।
रुकने का वक्त : सिर्फ रिजर्व बैंक ने ही नहीं, दुनिया भर में सेंट्रल बैंकों ने ब्याज दरों को हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया है, लेकिन अब वे भी थोड़ा रुकने के संकेत देने लगे हैं। अमेरिका के फेडरल रिजर्व ने अपने यहां ब्याज दरों को 16 साल के सबसे ऊंचे स्तर पर पहुंचा दिया है। उसने मई में भी ब्याज दरों में बढ़ोतरी की, लेकिन साथ ही संकेत दिया कि वह आगे चलकर इस तरह के कदम उठाने से परहेज भी कर सकता है। भारत में रिजर्व बैंक की मॉनेटरी पॉलिसी कमिटी क्या फैसला करती है, यह अमेरिकी फेडरल रिजर्व के रुख पर भी निर्भर करता है।
थोड़ा वक्त लगेगा : ग्लोबल ब्रोकरेज फर्म मॉर्गन स्टैनली का कहना है कि भारत में अगले साल जनवरी से ब्याज दरों में कटौती की शुरुआत हो सकती है। अगर महंगाई दर की स्थिति बेहतर रही तो कटौती उससे पहले भी हो सकती है। गोल्डमैन सैक्स कंपनी ने भी जनवरी से ब्याज दरों में कटौती का अनुमान लगाया है। एक अनुमान ये है कि अमेरिकी फेडरल रिजर्व जब ये फैसला कर लेगा कि ब्याज दरों में और बढ़ोतरी नहीं करनी, उसके पांच छह महीने के बाद रिजर्व बैंक ब्याज दरों में कटोती का फैसला ले सकता है।
Post Views: 47