नई दिल्ली। बाटला हाउस मुठभेड़ मामले में दोषी करार दिए गए इंडियन मुजाहिदीन (आइएम) आतंकी आरिज खान उर्फ जुनैद को निचली अदालत द्वारा दी गई फांसी की सजा की पुष्टि करने से दिल्ली हाई कोर्ट ने इन्कार कर दिया।
निचली अदालत का निर्णय पलटते हुए न्यायमूर्ति सिद्धार्थ मृदुल व न्यायमूर्ति अमित शर्मा की पीठ ने आरिज खान को इंस्पेक्टर मोहन चंद्र शर्मा की हत्या के लिए दोषी करार देने के निचली अदालत के निर्णय को बरकरार रखा, लेकिन फांसी की सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया। इस मुठभेड़ में दिल्ली पुलिस के इंस्पेक्टर मोहन चंद शर्मा बलिदान हुए थे।
जुर्माने की राशि भी की कम
इतना ही नहीं अदालत ने निचली अदालत द्वारा आरिज पर लगाए गए 11 लाख रुपये के जुर्माना को भी कम करके 1.15 लाख रुपये कर दिया। मामले को दुर्लभतम श्रेणी में मानने से इन्कार करने के पीछे अदालत के कई अहम तथ्यों पर विचार किया। अदालत ने तिहाड़ जेल के सामाजिक परिवीक्षा पदाधिकारी की रिपोर्ट पर गौर किया, जिसमें कहा गया कि पिछले एक वर्ष में आरिज को एक कृत्य के लिए दंडित किया गया था, लेकिन उसके आचरण के बारे में अधिक जानकारी नहीं दी गई।
अदालत ने मानव व्यवहार और संबद्ध विज्ञान (इबहास) की मनोवैज्ञानिक मूल्यांकन रिपोर्ट को देखा। इसमें कहा गया है कि आरिज का संतुलित व्यक्तित्व है और वह सामाजिक मानदंडों में विश्वास रखता है।
अदालत ने यह भी देखा कि उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ के जिला प्रोबेशन अधिकारी ने आरिज की स्थिति को सामान्य बताया था वर्ष 2008 की घटना से पहले वह मुजफ्फरनगर के एमडीआइटी इंजीनियरिंग कॉलेज में बी.टेक द्वितीय वर्ष का छात्र था। अदालत ने कहा कि दोषी की मां के नाम पर आजमगढ़ में कुछ कृषि भूमि है, जबकि आरिज के नाम पर कोई संपत्ति नहीं है।
उक्त तथ्यों की समग्रता और मामले की परिस्थितियों को देखते हुए पीठ ने कहा कि अदालत का मानना है कि यह मामला ‘दुर्लभतम मामले’ की श्रेणी में नहीं आता है। ऐसे में अदालत का विचार है कि दोषी के लिए आजीवन कठोर कारावास की सजा उचित होगी। वहीं, दोषी के नाम पर कोई संपत्ति नहीं होने के कारण वह निचली अदालत द्वारा लगाया गया कुल 11 लाख रुपये का भुगतान करने में सक्षम नहीं है।
ऐसे में विभिन्न धाराओें के तहत कुल जुर्माना राशि को घटाकर 1.15 लाख रुपये किया जाता है। अदालत ने 18 अगस्त को दिल्ली पुलिस व दोषी की तरफ से दलीलें सुनने के बाद अदालत ने अपना निर्णय सुरक्षित रख लिया था। दोषी शहजाद की याचिका लंबित रहने के दौरान मौत हो गई थी।
अधिवक्ताओं के तर्क
आरिज की तरफ से पेश हुए अधिवक्ता एमएस खान व कौसर खान ने तर्क दिया था कि ऐसा कुछ भी नहीं है जो यह कहे कि उनके मुवक्किल आरिज खान को सुधारा नहीं जा सकता। यह भी तर्क दिया था कि अगर सुधार की काेई संभावना नहीं है तो आजीवन कारावास की सजा का नियम है।
विशेष लोक अभियोजक राजेश महाजन ने कहा था कि एक वर्दीधारी पुलिस अधिकारी की हत्या दुर्लभ से दुर्लभतम मामला है, जाेकि मौत की सजा को उचित ठहराती है। उन्होंने अदालत के समक्ष खान की सामाजिक जांच रिपोर्ट और मनोवैज्ञानिक विश्लेषण रिपोर्ट पेश करते हुए कहा कि जेल में उसका आचरण असंतोषजनक है।
निचली अदालत का निर्णय
साकेत कोर्ट के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश संदीप यादव ने आठ मार्च 2021 को आरिज खान को दोषी ठहराया था और 15 मार्च 2021 को फांसी की सजा सुनाई थी। इसके बाद हाई कोर्ट को मौत की सजा की पुष्टि के लिए निचली अदालत से एक संदर्भ प्राप्त हुआ था।
यह है मामला
दिल्ली समेत देश के कई राज्यों में हुए बम धमाकों की जांच कर रही दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल खुफिया सूचना पर 19 सितंबर, 2008 राजधानी के जामिया नगर स्थित बाटला हाउस के मकान नंबर-108, एल-18 में पहुंची थी। वहां मुठभेड़ में इंडियन मुजाहिदीन के दो आतंकी आतिफ अमीन और मुहम्मद साजिद मारे गए थे। आरिज खान व शहजाद अहमद उर्फ पप्पू फरार हो गया था, जबकि जीशान को वहीं गिरफ्तार कर लिया गया था।
वर्ष 2008 में हुआ सीरियल ब्लास्ट
39 लोग मारे गए
159 जख्मी हुए
दो आतंकी अमीन और मुहम्मद साजिद मुठभेड़ में माैके पर मारे गए
पुलिस इंस्पेक्टर चंद्रमोहन शर्मा बलिदान हुए