नई दिल्ली: थोक और महंगाई दर में बेशक गिरावट का रुख जारी है, मगर महंगाई (Inflation) बढ़ने का रिस्क बना हुआ है। यह बात वित्त मंत्रालय की मार्च महीने के मंथली इकॉनमिक रीव्यू से सामने आई है। इसमें मंत्रालय ने कहा है कि महंगाई (Inflation) से हमारी लड़ाई जारी रहेगी। कम कृषि उत्पादन, उच्च कीमतों और ग्लोबल इकॉनमी में सुस्ती का प्रभाव भारत की इकॉनमी (Economy) पर पड़ सकता है। रीव्यू यानी समीक्षा में कहा गया है कि बढ़ती महंगाई को थामने के लिए मॉनिटरी पॉलिसी में जो कड़ा रुख अपनाया गया, उसने ग्रोथ की प्रक्रिया को कमजोर कर दिया है। इसके अलावा फरवरी 2022 में रूस और यूक्रेन के बीच छिड़े जंग का भार तीन वर्षों तक आर्थिक गतिविधियों पर पड़ने की आशंका है।
भारत की इकॉनमी मजबूत
आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि भारत की इकॉनमी (Economy) में चालू वित्त वर्ष के लिए 6.5% की GDP ग्रोथ का अनुमान विश्व बैंक और एशियाई विकास बैंक के अनुमानों के अनुरूप है, लेकिन कुछ ऐसी बातें भी हैं जो इकॉनमी ग्रोथ को प्रभावित कर सकती हैं। मसलन अल नीनो से सूखे जैसे हालात बन सकते हैं। इससे कृषि उत्पादन में कमी आ सकती है। कीमतें बढ़ सकती हैं। इसके अलावा भू राजनीतिक परिवर्तन और ग्लोबल इकॉनमी में अस्थिरता जैसे संभावित रिस्क को देखते हुए सतर्क रहना रहने की जरूरत है।
बेशक कोरोना महामारी और उक्त दूसरी चुनौतियों के बावजूद देश की अर्थव्यवस्था 2022-23 में मजबूत रही है। रिपोर्ट के मुताबिक भारत की इकॉनमी में मजबूती देखी जा रही है, इसके सात फीसदी की दर से बढ़ने करने का अनुमान है जो दूसरी प्रमुख इकॉनमी की तुलना में अधिक है। भारत की इकॉनमी में मजबूती का यह संकेत है कि चालू खाता घाटा कम हो रहा है, विदेशी पूंजी की आवक से विदेशी मुद्रा भंडार में बढ़ोतरी हो रही है।
फिलहाल महंगाई काबू में
आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि साल 2021-22 में पूरे वर्ष के लिए रिटेल महंगाई दर 5.5% थी, जो 2022-23 में बढ़कर 6.7% पर पहुंच गई। यह 2022-23 की दूसरी तिमाही में 6.1% पर ही रही, जो पहली छमाही में 7.2% था। अंतरराष्ट्रीय जिंसों के दामों में नरमी, सरकार के त्वरित कदमों और RBI की सख्त मॉनिटरी पॉलिसी ने घरेलू स्तर पर महंगाई को काबू करने में मदद दी।
बैंकिंग सिस्टम मज़बूत
वित्त मंत्रालय की मासिक आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि भारत की बैंकिंग प्रणाली, ब्याज दरों में बढ़ोतरी के कारण होने वाले तनाव से बचने के लिए पर्याप्त मजबूत है। RBI ने स्थितियों को देखते हुए जिस तरह से कदम उठाए हैं, वह उसकी बहुआयामी प्रकृति को दिखाता है। भारतीय बैंकों के बैलेंस शीट में सुधार हुआ है। ब्याज दरों में बदलाव को भारतीय बैंकिंग सिस्टम ने जिस रणनीतिक तरीके से अपनाया, उससे भारत की वित्तीय स्थिरता के लिए अच्छा संकेत मिलता है। यह भारत में सिलिकॉन वैली बैंक जैसी घटना होने संभावना को काफी कम कर देता है। हाल ही अमेरिका और यूरोप में कई बैंक वित्तीय रूप से डूब गये।
समीक्षा में कहा गया है कि RBI और सरकार की ओर से हाल के वर्षों में किए गए उपायों ने बैंकिंग प्रणाली की स्थिरता दी है, साथ ही रिस्क झेलने की क्षमता में सुधार किया है। रिजर्व बैंक ने बैंकिंग क्षेत्र पर निगरानी बढ़ाई है और इसके दायरे में आने वाले संस्थान बढ़े हैं। बैंकों पर दबाव का परीक्षण भी समय-समय पर किया जाता है। समीक्षा के मुताबिक जमा की तेजी से निकासी होने की आशंका नहीं है क्योंकि 63% जमा परिवारों की ओर से किए जाते हैं जो निकासी जल्द नहीं करते। इन सब कारकों की वजह से भारत के बैंक अमेरिका और यूरोप के बैंकों से अलग हैं।