प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) ने राजधानी में 26 अलीपुर रोड पर डॉ आंबेडकर नेशनल मेमोरियल का शुभारंभ किया था। पीएम ने उस दिन इतिहास के कुछ कड़वे पन्ने पलटे थे। कांग्रेस को आईना दिखाया था। चुनौती दी थी कि वह एक काम बता दे जो उसने बाबा साहेब (Babasaheb Bhimrao Ambedkar) के लिए किया हो। उन्होंने आंबेडकर से जुड़ा किस्सा सुनाते हुए बताया था कि कैसे जीवित रहते हुए कांग्रेस ने उनका अपमान करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। उनके रास्ते में वो सभी रोड़े डाले जिससे आंबेडकर का संसद पहुंचने का रास्ता रुक जाए। तब कोई और नहीं, बल्कि डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी आंबेडकर के पीछे मजबूती के साथ खड़े हुए थे। पीएम मोदी ने यह किस्सा सुनाते हुए बताया था कि कैसे देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने आंबेडकर के लिए मुश्किलें खड़ी कर दी थीं।
प्रधानमंत्री ने बताया था कि 1951 में कैबिनेट से इस्तीफा देने के बाद बाबा साहेब ने 1952 में लोकसभा का आम चुनाव लड़ा था। कांग्रेस ने न सिर्फ उनके खिलाफ अपना उम्मीदवार उतारा, बल्कि खुद नेहरू उनके खिलाफ प्रचार के लिए पहुंच गए थे। कांग्रेस ने बाबा साहेब को चुनाव में हराने के लिए पूरी ताकत झोंक दी थी। इस कारण बाबा साहेब को हार का अपमान सहना पड़ा था। इसके बाद बाबा साहेब ने 1954 में भंडारा सीट से लोकसभा का उपचुनाव लड़ा। लेकिन, दोबारा कांग्रेस ने उनके खिलाफ उम्मीदवार उतारा। फिर बाबा साहेब को लोकसभा पहुंचने से रोक दिया गया। इस लगातार अपमान के समय अगर उनका साथ किसी ने दिया था तो वह डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी थे। उनके प्रयासों से बाबा साहेब राज्यसभा में पहुंचे थे। डॉ श्यामा प्रसाद वही थे जिन्होंने जन संघ को जन्म दिया जो भारतीय जनता पार्टी के रूप में काम कर रही है।
पीएम ने तब कांग्रेस को चुनौती दी थी कि वह एक काम बता दे जो उसने बाबा साहेब के लिए किया हो। कांग्रेस के पास इसका कोई जवाब नहीं है। जवाब के नाम पर वो सिर्फ झूठ बोलना जानते हैं।
दरअसल, 1952 में जब लोकसभा का पहला चुनाव हुआ था तब नेहरू लहर थी। नेहरू जनमानस पर छाए हुए थे। जो कोई भी उस समय कांग्रेस से चुनाव लड़ा, जीत गया। डॉ. भीमराव आंबेडकर भी इस चुनाव में खड़े हुए थे। आजादी के संघर्ष में आंबेडकर सबसे प्रमुख शख्सियतों में से थे। वह महात्मा गांधी से 22 साल छोटे थे। 14 अप्रैल 1891 को दलित परिवार में वह जन्मे थे। देश में उनके जैसा पढ़ा-लिखा उस समय शायद ही कोई था। इकोनॉमिक्स से दो-दो डॉक्टरेट की डिग्रियां थीं उनके पास। एक अमेरिका की कोलंबिया यूनिवर्सिटी से। दूसरी लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से। आंबेडकर की योग्यता को देखते हुए उन्हें ड्राफ्टिंग कमिटी का चेयरमैन बनाया गया था।
पहले लोकसभा चुनाव में आंबेडकर का रास्ता रोकने के लिए नेहरू ने उनके पर्सनल असिस्टेंट नारायण काजरोलकर को मैदान में खड़ा किया था। उनकी हार सुनिश्चित करने के लिए खुद नेहरू ने कैंपेनिंग भी की थी। आंबेडकर तब शेड्यूल्ड कास्ट फेडरेशन पार्टी से चुनाव लड़े थे। यह सीट थी बॉम्बे नॉर्थ सेंट्रल। 1954 में भी नेहरू ने ही दूसरी बार पक्का किया कि वह भंडारा से उपचुनाव में न जीत पाएं। राज्यसभा के जरिये आंबेडकर की संसद में एंट्री हुई थी। 26 अलीपुर रोड जहां डॉ आंबेडकर नेशनल मेमोरियल का पीएम ने शुभारंभ किया था, वहीं बाबा साहेब ने 6 दिसंबर 1956 को अंतिम सांस ली थी।