ओमप्रकाश अश्क, नई दिल्ली: कोई कुछ भी कहे, पर यह तो सभी को मानना ही पड़ेगा कि विपक्षी पार्टियों में अब भी कांग्रेस का कद बड़ा है। कांग्रेस को बड़ा बताना कोई बड़बोलापन नहीं, हकीकत है। तभी तो मल्लिकार्जुन खरगे के एक फोन कॉल पर बिहार के सीएम नीतीश कुमार अपने डेप्युटी सीएम तेजस्वी यादव और अपनी पार्टी के अध्यक्ष राजीव रंजन उर्फ ललन सिंह के पटना से भागे-भागे दिल्ली पहुंच गए। अगले दिन शरद पवार भी हाजिर हो गए। अब उद्धव ठाकरे मुलाकात के लिए दिल्ली पहुंचने वाले हैं। यह अलग बात है कि दिल्ली में रह कर भी अरविंद केजरीवाल ने अब तक कांग्रेस के किसी नेता से मिलने से परहेज किया है।
संसद सदस्य न रहने पर भी राहुल का भाव नहीं घटा!
कांग्रेस के नेता और पार्टी द्वारा पीएम फेस घोषित किए जा चुके राहुल गांधी मानहानि मामले में सजा और संसद की सदस्यता जाने के बाद भी हॉट केक बने हुए हैं। विपक्षी नेताओं की बैठकें-मुलाकात खरगे के घर ही होती है, लेकिन राहुल की मौजूदगी उसमें जरूर होती है। वैसे राहुल गांधी के दिन अच्छे नहीं चल रहे हैं। अब तो सावरकर के पोते ने भी पुणे कोर्ट में मामला दर्ज कराया है कि राहुल गांधी ने उनके दादा का कई मौकों पर अपमान किया है। माना जा रहा है कि इस मामले में भी राहुल के खिलाफ मानहानि का केस दर्ज हो ही जाएगा। उधर, असम के सीएम हेमंत बिस्वा सरमा ने राहुल गांधी के खिलाफ मानहानि का केस दर्ज करने की धमकी दी है। पटना और रांची में राहुल के खिलाफ पहले से ही मामले दर्ज हैं। यानी राहुल को चौतरफा घिरा देख कर कांग्रेस भी अब मानने लगी है कि राहुल शायद 2024 का चुनाव नहीं लड़ पाएं। हालांकि यह स्थिति तब आएगी, जब कम से कम सूरत की अदालतत से उन्हें राहत न मिले।
विपक्ष के लिए यह बिल्ली के भाग्य से छींका टूटने जैसा
राहुल का चुनाव न लड़ना विपक्ष के लिए बिल्ली के भाग्य से छींका टूटने जैसा ही अवसर है। राहुल की दावेदारी न रहने पर विपक्ष के किसी व्यक्ति को पीएम फेस बनने का मौका मिल सकता है। कहते हैं न कि जब बाढ़ आती है तो जहरीले सांप और आदमी मजबूरी में एक ही पेड़ पर शरण लेते हैं। जिस तरह ईडी-सीबीआई जैसी केंद्रीय एजेंसियां भ्रष्टाचार के खिलाफ एकजुट हुई हैं और दोष साबित कराने व सजा दिलाने में उन्हें कामयाबी मिल रही है, उससे यह आशंका बढ़ गई है कि अब कोई भ्रष्टाचारी बचने वाला नहीं है। बंगाल में मंत्री, विधायक से लेकर तृणमूल के नेताओं-कार्यकर्ताओं तक जांच एजेंसियां पहुंच रही हैं। इससे तो यही लगता है कि अब ऐसे किसी आदमी का बच पाना शायद ही संभव हो। यही वजह रही कि कांग्रेस रहित विपक्ष पर जोर देने वाली ममता बनर्जी को अब कांग्रेस के साथ बैठने में भी कोई परहेज नहीं है। सीबीआई-ईडी की कार्रवाई रोकने के लिए ऐसे 14 दलों के नेता तो सुप्रीम कोर्ट भी पहुंच गए थे। दुर्भाग्यवश वहां उनकी मांग ही खारिज हो गई।
पीएम मोदी ने सीबीआई-ईडी को दे रखी है खुली छूट
इधर, भ्रष्टाचार के खिलाफ हल्ला बोल से विपक्षी दलों के नेता घबराए हुए हैं तो दूसरी ओर पीएम नरेंद्र मोदी ने सेंट्रल जांच एजेंसियों को साफ कह दिया है कि कोई प्रभावशाली व्यक्ति भी जांच की जद में आए तो उस पर रियायत करने की जरूरत नहीं। अब तो ईडी और सीबीआई के छापे लगातार जहां-तहां देश भर में पड़ने लगे हैं। नौकरशाह से लेकर राजनीतिक व्यक्तियों तक जांच की आंच पहुंचने लगी है। सीबीआई के एक भरोसेमंद सूत्र की मानें तो तीन दर्जन प्रभावशाली नेताओं की लिस्ट तैयार है। उनके खिलाफ किसी भी वक्त बड़ा एक्शन हो सकता है। लालू, उनकी पत्नी, बेटा और बेटियों से लैंड फार जाब मामले में लगातार पूछताछ, लालू की सजा बढ़ाए जाने की मांग को लेकर सीबीआई का हाईकोर्ट जाना, ममता के मंत्रियों-विधायकों और उनके गुर्गों की गिरफ्तारी, दिल्ली में सत्येंद्र जैन और मनीष सिसोदिया का जेल जाना ईडी-सीबीआई की सक्रियता के ही परिणाम हैं।
राहुल नहीं तो दूसरे विपक्षी नेता को मिल सकता है मौका
कांग्रेस भी अब इस मनःस्थिति में है कि राहुल गांधी अगर चुनाव नहीं लड़ते हैं तो विपक्षी एका बना कर उनमें से ही किसी को पीएम फेस बनाया जाए। अफसोस कि यही सलाह नीतीश कुमार ने एनडीए से अलग होने पर 2013 में कांग्रेस को दी थी। राजनीतिक मामलों के विशेषज्ञ और वरिष्ठ पत्रकार सुरेंद्र किशोर कहते हैं- ‘यदि मेरी जानकारी सही है तो सन 2013 में ही नीतीश कुमार ने सोनिया गांधी से आग्रह किया था कि आप गैर भाजपा दलों की समन्वय समिति बनाने के लिए पहल करें। उस पर सोनिया जी ने कहा था कि नीतीश जी, चिंता मत कीजिए, राहुल यह सब देख लेगा। कांग्रेस को नीतीश कुमार की याद अब इसलिए आई है कि राहुल से भरोसा टूट चुका है। वैसे भी नीतीश से बेहतर चेहरा आज प्रतिपक्ष के पास नहीं है।
प्रतिपक्षी एकता का हिमालय की चोटी पर चढ़ने जैसा
विपक्ष के एकता प्रयासों पर सुरेंद्र किशोर कहते हैं- ‘पूर्ण प्रतिपक्षी एकता का काम हिमालय की चोटी पर चढ़ने से कम कठिन काम नहीं है। मैं यह नहीं कह रहा हूं कि यह काम असंभव है। क्योंकि एवरेस्ट पर्वतारोही हुए ही हैं। जिन दलीय सुप्रीमो और उनके रिश्तेदारों के खिलाफ गंभीर आरोपों के तहत मुकदमे चल रहे हैं, उनका भयादोहन करके प्रतिपक्षी एकता से उन्हें दूर रखना केंद्रीय सत्ता के लिए बहुत कठिन काम नहीं होगा। नीतीश कुमार को छोड़ कर अधिकतर बड़े प्रतिपक्षी नेतागण भ्रष्टाचार के केस में प्रत्यक्ष-परोक्ष रूप से फंसे हैं। कई जमानत पर हैं। कई अन्य जेल के दरवाजे पर हैं तो कुछ भीतर भी। कुछ जेल के रास्ते में हैं। कितना भी एजेंसियों के दुरुपयोग का नारा लगाइए, अदालतें आरोपियों को राहत नहीं दे रही हैं। लोगबाग इसे गौर से देखते हैं। ऐसे में प्रतिपक्ष अपनी नैतिक धाक मतदाताओं पर कैसे जमाएगा ? 2014 में सत्ता में आने के बाद पिछले नौ साल में नरेंद्र मोदी सरकार ने अपने सकारात्मक कामों के जरिए भाजपा को मजबूत कर लिया है। साथ ही, बड़े-बड़े प्रतिपक्षी नेताओं के खिलाफ भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों का भंडाफोड़ करके व उनके अतिवादी अल्पसंख्यक समर्थन को जगजाहिर करके मेादी ने उन्हें कुछ और कमजोर कर दिया है। यहां से ऊपर उठना प्रतिपक्ष के लिए और भी कठिन हो गया है। हालांकि यह काम असंभव भी नहीं है।