नई दिल्ली : आर्म्ड फोर्सेस ट्रिब्यूनल में भारतीय सेना के सैनिकों की सैलरी से जुड़े कई केस चल रहे हैं। सैनिकों, जेसीओ या फिर ऑफिसर को जब प्रमोशन मिलता है तो उन्हें प्रमोशनल इंक्रीमेंट लेने का वक्त तय करना होता है। इसी वजह से कई सैनिक बाद में यह शिकायत लेकर ट्रिब्यूनल पहुंचे हैं कि उन्हें विकल्प के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं थी और इसकी वजह से उन्हें सैलरी में नुकसान उठाना पड़ रहा है। एक वक्त ऐसा भी था जब यह नियम था कि पेइंग अथॉरिटी यानी सैलरी देने वाली अथॉरिटी खुद तय करेगी कि सैनिकों या ऑफिसर्स के लिए कौन का विकल्प सही है। इस दौरान कोई शिकायत भी नहीं आई और लोग शिकायत लेकर ट्रिब्यूनल भी नहीं पहुंचे। अब ट्रिब्यूनल ने फिर से वहीं नियम बनाने को कहा है लेकिन मामला रक्षा मंत्रालय के फाइनेंस डिपार्टमेंट में अटका है। पिछले साल नवंबर में हुई आर्मी कमांडर्स कॉन्फ्रेंस में भी नियम बदलने वाले मसले को लेकर चर्चा हुई।
क्या है नियम?
अभी यह नियम है कि सैनिक, जेसीओ या ऑफिसर को प्रमोशन मिलने पर वह प्रमोशनल इंक्रीमेंट कब लेंगे यह विकल्प देना होता है। मान लीजिए दो सैनिकों का एक साथ प्रमोशन हुआ अगस्त में। एक ने विकल्प चुना कि वह अपना प्रमोशनल इंक्रीमेंट प्रमोशन की तारीख से लेगें। तो उन्हें तब इंक्रीमेंट मिल जाएगा और जो सालाना इंक्रीमेंट है वह फिर जुलाई में होगा। इसी तरह जुलाई से जुलाई में सालाना इक्रीमेंट चलेगा। लेकिन दूसरे सैनिक ने विकल्प चुना कि वह प्रमोशनल इंक्रीमेंट को भी सालाना इंक्रीमेंट की जो तारीख है उसी से एक साथ लेंगे यानी जुलाई में। ऐसे में नियम के मुताबिक फिर उन्हें अगला सालाना इंक्रीमेंट छह महीने में मिल जाएगा यानी फिर जनवरी में उन्हें अगला सालाना इंक्रीमेंट मिलेगा और फिर जनवरी से जनवरी की साइकल हो जाएगी। इसमें अलग कंडीशन के हिसाब से किसी के लिए पहला विकल्प फायदेमंद है तो किसी के लिए दूसरा।
अभी यह नियम है कि सैनिक, जेसीओ या ऑफिसर को प्रमोशन मिलने पर वह प्रमोशनल इंक्रीमेंट कब लेंगे यह विकल्प देना होता है। मान लीजिए दो सैनिकों का एक साथ प्रमोशन हुआ अगस्त में। एक ने विकल्प चुना कि वह अपना प्रमोशनल इंक्रीमेंट प्रमोशन की तारीख से लेगें। तो उन्हें तब इंक्रीमेंट मिल जाएगा और जो सालाना इंक्रीमेंट है वह फिर जुलाई में होगा। इसी तरह जुलाई से जुलाई में सालाना इक्रीमेंट चलेगा। लेकिन दूसरे सैनिक ने विकल्प चुना कि वह प्रमोशनल इंक्रीमेंट को भी सालाना इंक्रीमेंट की जो तारीख है उसी से एक साथ लेंगे यानी जुलाई में। ऐसे में नियम के मुताबिक फिर उन्हें अगला सालाना इंक्रीमेंट छह महीने में मिल जाएगा यानी फिर जनवरी में उन्हें अगला सालाना इंक्रीमेंट मिलेगा और फिर जनवरी से जनवरी की साइकल हो जाएगी। इसमें अलग कंडीशन के हिसाब से किसी के लिए पहला विकल्प फायदेमंद है तो किसी के लिए दूसरा।
क्यों है दिक्कत?
1 जनवरी 2006 से 10 अक्टूबर 2008 तक यही नियम था। कई सैनिक ट्रिब्यूनल गए। उन्होंने कहा कि विकल्पों को लेकर उन्हें जानकारी नहीं थी इसलिए उन्हें सैलरी का नुकसान उठाना पड़ा। सवाल यह भी है कि बॉर्डर पर तैनात सैनिक अपनी ड्यूटी पर ध्यान दें या फिर विकल्प को लेकर हिसाब किताब करें कि किसमें कितना फायदा है।
1 जनवरी 2006 से 10 अक्टूबर 2008 तक यही नियम था। कई सैनिक ट्रिब्यूनल गए। उन्होंने कहा कि विकल्पों को लेकर उन्हें जानकारी नहीं थी इसलिए उन्हें सैलरी का नुकसान उठाना पड़ा। सवाल यह भी है कि बॉर्डर पर तैनात सैनिक अपनी ड्यूटी पर ध्यान दें या फिर विकल्प को लेकर हिसाब किताब करें कि किसमें कितना फायदा है।
क्या ऑर्डर दिया ट्रिब्यूनल ने?
सितंबर 2021 में ट्रिब्यूनल ने ऑर्डर दिया कि प्रभावित सैनिकों और जेसीओ के रेकॉर्ड वेरिफाई करें और उनकी सैलरी रीफिक्स करें। इससे करीब डेढ़ लाख सैनिक प्रभावित हुए हैं। इसी तरह का फैसला ट्रिब्यूनल ने पिछले साल ऑफिसर्स के लिए भी दिया, इसमें करीब 1500 ऑफिसर प्रभावित हैं। ट्रिब्यूनल ने साथ ही यह भी ऑर्डर दिया कि नियम बदल कर पहले वाला नियम लागू किया जाए जिसके मुताबिक पेइंग अथॉरिटी खुद ही विकल्प तय करेगी कि प्रमोशन होने पर कौन सा विकल्प किसके लिए सबसे सही है। यही नियम 11 अक्टूबर से लेकर 31 दिसंबर 2015 तक चल रहा था और इस दौरान किसी भी सैनिकों ने कोई शिकायत नहीं की।
सितंबर 2021 में ट्रिब्यूनल ने ऑर्डर दिया कि प्रभावित सैनिकों और जेसीओ के रेकॉर्ड वेरिफाई करें और उनकी सैलरी रीफिक्स करें। इससे करीब डेढ़ लाख सैनिक प्रभावित हुए हैं। इसी तरह का फैसला ट्रिब्यूनल ने पिछले साल ऑफिसर्स के लिए भी दिया, इसमें करीब 1500 ऑफिसर प्रभावित हैं। ट्रिब्यूनल ने साथ ही यह भी ऑर्डर दिया कि नियम बदल कर पहले वाला नियम लागू किया जाए जिसके मुताबिक पेइंग अथॉरिटी खुद ही विकल्प तय करेगी कि प्रमोशन होने पर कौन सा विकल्प किसके लिए सबसे सही है। यही नियम 11 अक्टूबर से लेकर 31 दिसंबर 2015 तक चल रहा था और इस दौरान किसी भी सैनिकों ने कोई शिकायत नहीं की।