नई दिल्ली: चंद्रशेखर (Chandra Shekhar) ने कांग्रेस (Congress) के समर्थन से 64 सांसदों को साथ लेकर सरकार बनाने का दावा पेश किया था और 10 नवंबर 1990 को भारत के 8 वें प्रधानमंत्री पद की शपथ ली। हालांकि वह कुछ ही महीनों तक प्रधानमंत्री रहे। चंद्रशेखर सादगी और अपनी बात खरी-खरी कहे जाने के लिए जाने जाते थे। यूपी के बलिया में पैदा हुए चंद्रशेखर को भारतीय राजनीति में इस बात के लिए जाना जाता है कि उनको जो कहना होता था वह कहते थे। उनका यह रवैया संसद के भीतर और बाहर एक जैसा था। लोकसभा (Lok Sabha) में उनके कई ऐसे भाषण हैं जिन्हें आज भी याद किया जाता है। वीपी सिंह (VP Singh) की जब सरकार गिर गई तो उसके बाद चंद्रशेखर प्रधानमंत्री बने। हालांकि राजनीतिक गलियारों में आज भी यह कहा जाता है कि चंद्रशेखर को अंधेरे में रखकर वीपी सिंह को प्रधानमंत्री बनाया गया था। प्रधानमंत्री बनने के बाद जल्द मंत्रिमंडल का विस्तार नहीं हुआ था और लोकसभा में इसको लेकर विपक्षी दल सवाल खड़े कर रहे थे। 16 नवंबर 1990 में लोकसभा में बोलते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने इस मुद्दे पर वाम दलों पर तीखा हमला किया था।
मंत्रि परिषद में अपना विश्वास व्यक्त करते हुए चंद्रशेखर ने कहा कि मुझे इस बात का बड़ा दुख है कि मंत्रिमंडल के न बनने से हमारे कई मित्रों को बड़ा सदमा पहुंचा है। उनकी इच्छा है कि मंत्रिमंडल के सभी सदस्यों को जल्दी से जल्दी देख लें। मंत्रियों की तस्वीर देखते-देखते आदत इतनी बिगड़ गई है कि बिना उन्हें देखे उनको संसद निरर्थक मालूम होती है। कुछ सांसदों ने आवाज उठाई है कि संसद में हमारा कोई बहुमत नहीं है। मैं उनको इस बात के लिए कोई मौका नहीं देना चाहता था कि उनकी इच्छा के बिना या संसद के इच्छा के बिना बड़े पैमाने पर मंत्रिमंडल का विस्तार किया जाए।
इसका एक ही कारण था कि संसद में विश्वास प्राप्त करने के बाद तुरंत मंत्रिमंडल का विस्तार किया जाएगा। उन्होंने ऐसे सदस्यों पर तंज कसते हुए कहा कि जैसे एक खास तरह की चिड़िया होती है जिसे सूरज की रोशनी में कुछ दिखाई नहीं देता। इसमें सूरज की रोशनी का कोई दोष नहीं चिड़िया की आंख का दोष है। चंद्रशेखर ने कहा कि मैं किसी पर आरोप नहीं लगाना चाहता और इस समय कोई लंबा चौड़ा भाषण नहीं देना चाहता। चंद्रशेखर ने कहा कि हमने कांग्रेस के लोगों का समर्थन लिया और मुझे ऐसा करने में कोई ग्लानि नहीं है। मैंने समर्थन लिया है और वही समर्थन मैं चाहता हूं अपने मित्रों से भी जो आज शेम-शेम कह रहे हैं। सवाल किसी एक व्यक्ति के गौरव का नहीं है। कई बार नारे लगाए जाते हैं कि प्रधानमंत्री कौन है? आज अभी आपको मालूम नहीं है, कुछ दिनों में मालूम हो जाएगा कि प्रधानमंत्री कौन है, ज्यादा अच्छी तरह से मालूम हो जाएगा।
मैं कहना चाहता हूं कि उन लोगों से कि एक दिन इस देश को बचाने के लिए आडवाणी जी आपके लिए देवता थे और आज आडवाणी जी आपके लिए राक्षस हो गए। तो यह राजनीति आपकी है मेरी नहीं। आज वामपंथी दल के लोग जो ऐसा समझते हैं कि उन्हें सर्टिफिकेट देने का अधिकार मिल गया है- जिसको चाहे प्रगतिशील कह दें, जिसको चाहे प्रतिक्रियावादी कह दें। मुझे इनसे कोई सर्टिफिकेट नहीं चाहिए। मैं बड़ी विनम्रता से यही कहना चाहता हूं कि मैंने भी इस देश की राजनीति में कुछ समय बिताया है। इन बड़े बहादुरों को मैंने बहुत नजदीक से देखा है। मुझे कुछ कहने से पहले ये जरा अपने दिल पर हाथ रखकर सोचें और सारे वामपंथी नेताओं, खासकर उन वामपंथी नेताओं को जिन्होंने राष्ट्रीय आंदोलन में काम किया है। जिनके पीछे एक इतिहास है, उस इतिहास के नाते आदर करता हूं और आज भी मैं समझता हूं उनको शायद परिस्थितियों का ज्ञान नहीं है।
वीपी सिंह की सरकार दो बैसाखियों पर टिकी थी एक बीजेपी और दूसरे वामपंथी। रथ यात्रा के दौरान जब लाल कृष्ण आडवाणी को गिरफ्तार किया गया तो बीजेपी ने 23 अक्टूबर 1990 को सरकार से समर्थन वापस ले लिया। 7 नवंबर को विश्वास मत हारने के बाद वीपी सिंह की सरकार चली गई। 7 नवंबर 1990 की रात ग्यारह घंटे की बहस के बाद वीपी सिंह सरकार के पक्ष में 142 और विपक्ष में 346 वोट पड़े। अगले ही दिन जनता दल में विभाजन हो गया। कुछ सांसदों ने चंद्रशेखर का दामन पकड़ा जिन्होंने समाजवादी जनता दल के नाम से नई पार्टी बनाई और कांग्रेस के बाहरी समर्थन से सरकार बनाई।
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