नई दिल्ली: फांसी की सजा पर डिबेट होती रहती है। अब सुप्रीम कोर्ट तक यह मामला पहुंचा है कि मृत्युदंड कुछ इस तरह से दिया जाए, जिसमें दर्द न हो। आसान मौत क्या होती है? बिना जल्लाद मौत कैसे दी जाएगी? फांसी की जगह दूसरा विकल्प क्या है? कई सवालों के जवाब ढूंढने हैं। आपने पढ़ा भी होगा कि दुनिया में कहीं गोली मारी जाती है, जहर दिया जाता है या फिर मौत की सजा देने के लिए दूसरा विकल्प चुना जाता है। अपने देश में बहुत से लोग ऐसा मानते हैं कि गले में बक्सर की स्पेशल रस्सी से इंसान को लटकाना अमानवीय है। आखिरी 24 घंटे कैदी को बहुत ही डराते हैं जब वक्त हाथ में रेत की तरह फिसलता जाता है। फांसी से ठीक पहले नहलाना, नए कपड़े पहनाना और चाय देना… यह सब कैदी की पीड़ा को मानसिक रूप से बढ़ाता है। कई बार खबरें आती हैं कि कैदी इतना डर जाते हैं कि वे फांसी वाली जगह पर कदम ही नहीं बढ़ा पाते। कैदी के मुंह पर काला कपड़ा और हाथ-पैर बांधना उसे अंदर से पहले ही मार देता है। गर्दन में बंधी रस्सी से कैदी झूल जाता है। इसके बाद कुछ समय तक कैदी तड़पता रहता है। उसे भयानक दर्द होता है।
गर्दन की हड्डियां टूटती हैं फिर जान निकलती है। गर्दन को सिर से जोड़ने वाली हड्डी कितनी देर में टूटेगी, यह कैदी के वजन पर निर्भर करती है। कई बार एक मिनट से ज्यादा वक्त लग जाता है। अब इसका विकल्प ढूंढा जा रहा है। सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में बताया है कि वह मृत्युदंड के दोषियों को फांसी दिए जाने के प्रचलित तरीके की जांच करने के लिए विशेषज्ञों की एक समिति गठित करने पर विचार कर रही है। चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस जे बी पारदीवाला की पीठ ने केंद्र की ओर से पेश अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी की इन दलीलों पर गौर किया कि सरकार विशेषज्ञों की समिति बनाने के उनके सुझाव पर विचार कर रही है। इस पर चर्चा का दौर जारी है। अटॉर्नी जनरल ने कहा कि प्रस्तावित समिति के लिए नाम तय करने से संबंधित प्रक्रिया चल रही है और वह कुछ समय बाद इस पर जवाब दे पाएंगे।