– पांच चिकित्सक दे रहे बीमारों को संजीवनी, इलाज के नाम बंदरवाट का खुला खेल
संदीप सिंह गहरवार
भोपाल। एक तरफ मध्यरप्रदेश के मुखिया शिवराज सिंह चौहान भ्रष्टाचार के विरूद्ध जीरो टांलरेंस की बात कर अफसरों पर गाहे-बजाहे गाज गिराते रहते है, वहीं दूसरी तरफ उन्ही की नाक के नीचे कार्य करने वाले मंत्रालयीन कर्मचारियों ने इलाज के नाम पर एक बड़ी बंदरवाट करते हुए महज ढाई साल में सरकारी खजाने को तीस करोड़ की चपत लगा दी । मामले में सबसे बड़ी बात यह है कि मामला उजागर होने के बाद भ्रष्ट कर्मचारियों और अधिकारियों के विरूद्ध कार्रवाई करने बजाए मुख्यमंत्री के अधीनस्थ सामान्य प्रशासन विभाग मामले में पर्दा डालने पर जुटा है । इलाज के नाम पर ली गई यह राशि कोई छोटी-मोटी रकम नहीं तीस करोड़ की बड़ी राशि है । इस राशि को ठिकाने लगवाने के लिए खानापूर्ति के बतौर मंत्रालयीन कर्मचारियों को स्वास्थ्य महकमें के पांच डॉक्टर "संजीवनी" देने का काम कर रहे है । जानकार सूत्र बताते है कि मंत्रालय के सामान्य प्रशासन विभाग की लेखा शाखा में पदस्थ एक बड़े बाबू तीस फीसदी कमीशन में यह सारा खेल करते है । जिस भी कर्मचारी को फर्जी मेडिकल बिल बनवाना हो वह इन बड़े बाबू से सीधे तौर पर या उनके कमीशन एजेंटों के माध्यम से संपर्क कर अपने कागजात सौंप देता है। यही से ये बड़े बाबू डॉक्टरों के माध्यम से फर्जी मेडिकल बिल पास करने का धंधा कर रहे है । जानकार सूत्र तो यह भी बताते है कि उन पांच डॉक्टरों ने अपने हस्ताक्षर और सील लगे हुये फॉर्म इन बड़े बाबू को सौंप रखे है ताकि कभी आकस्मिकता में ये उन प्रपत्रों का उपयोग कर सके ।
मुख्य लेखाधिकारी की मेहरबानी कायम :
सूत्रों के अनुसार बीमारी के नाम पर फर्जी मेडिकल बिल के घोटाले को अंजाम दे रहे सामान्य प्रशासन विभाग के बड़े बाबू पर विभाग के मुख्य लेखाधिकारी की मेहरबानी जरूरत से ज्या्दा बनी हुई है। सारा मामला बड़े अफसरों के संज्ञान में होने के बाद भी इस फर्जीवाड़े को अंजाम दिया जा रहा है। जानकार बताते है कि सामान्य प्रशासन विभाग की मुख्य लेखाधिकारी श्रीमती संतोष सोनकिया विगत पांच वर्षों के अधिक समय से मंत्रालय की लेखा शाखा में पदस्थ है । इनके पति भी प्रशासनिक अफसर है, इसी कारण सोनकिया को अभी तक वहां से हटाया नहीं जा सका।
ढाई साल में खाली किया खजाना :
जानकार सूत्र बताते है कि सरकारी खजाने को चपत लगाने का यह कारनामा मंत्रालयीन कर्मचारियों ने ढाई साल में अंजाम दिया है। सूत्रों के अनुसार जनवरी 2020 से अक्टूबर 2022 तक लगभग 29 करोड 46 लाख 24 हजार 226 रूपये का मेडिकल बिल मंत्रालय में पदस्थ कर्मचारियों ने इलाज के नाम पर आहरित कर लिये । कर्मचारियों के फर्जीवाड़े को देखकर तो यही लगता है कि मध्यप्रदेश के सर्वोच्च कार्यालय राज्य मंत्रालय में काम करने वाले तमाम कर्मचारी गंभीर बीमारियों के शिकार है । एक तरफ प्रदेश सरकार स्वास्थ्य विभाग में बजट के नाम पर करोड़ो का आवंटन कर प्रदेश को निरोगी रखने की कोशिश कर रही है तो वही रूपयों के लालच में मुख्यमंत्री की नाक के नीचे कार्य करने वाले कर्मचारी प्रदेश को बीमारू राज्य बनाने में तुले है ।
विधानसभा में उठा सवाल, नहीं मिला जवाब :
बीमारी के नाम पर हो रहे इस फर्जीवाड़े की जानकारी जब छिन्दवाड़ा जिले की चौरई विधानसभा के जुझारू विधायक चौधरी सुजीतमेर सिंह के पास पहुंची तो उन्होंने मामले को विधानसभा में उठाया । विधायक श्री सिंह ने सवाल के माध्यम से जब यह जानना चाहा कि एक वित्तीय वर्ष में 25000 रूपये से अधिक की राशि आहरित करने वाले कर्मचारियों की संख्या कितनी है तथा एक ही चिकित्सक के माध्यम से मेडिकल प्रमाण पत्र प्रस्तुत कर मेडिकल बिल का लाभ लेने वाले कर्मचारियों के विरूद्ध क्या कार्यवाही की जावेगी । इस पर सामान्य प्रशासन विभाग ने जानकारी देने के बजाए गोलमोल जबाव देते हुए जानकारी एकत्रित करने का बहाना बना दिया । सवाल यह है कि ढाई साल में बीमारी के नाम पर 30 करोड़ आहरित करने वाले कर्मचारियों पर फौरी कार्रवाई करने के बजाए सब कुछ जानते हुए भी मध्यप्रदेश के सामन्य प्रशासन विभाग ने लोकतंत्र के पवित्र मंदिर विधानसभा में सवाल का उत्तर देने के बजाए उसे टालना बेहतर समझा ।
मंत्रालय की भांति अन्या कार्यालयों में भी घोटाले की बू :
जिस प्रकार प्रदेश के सर्वोच्च कार्यालय में मेडिकल घोटाला उजागर हुआ है, उसी प्रकार जांच पर विध्यांचल, सतपुड़ा, पर्यावास में लगने वाले विभागों में इस प्रकार का बड़ा मेडिकल फर्जीवाड़ा सामने आ सकता है । इस फर्जी मेडिकल घोटाले की जांच किसी स्वतंत्र एजेंसी अथवा ईओडब्ल्यू या सीबीआई से कराने पर प्रदेश में वर्षों से संचालित हो रहे एक बड़े फर्जी मेडिकल रैकेट का खुलासा हो सकता है। इतना ही नहीं इस घोटाले की तह में जाने पर तीस करोड़ की राशि बढ़कर अरबों में पहुंच सकती है । प्रदेश में हुये आयुष्मान घोटाले की तरह इस फर्जी मेडिकल बिल घोटाले की जांच भी अविलंब रूप से कराई जाना आवश्यक है, अन्यथा सरकारी खजाने को चपत लगाने का यह क्रम अनवरत जारी रहेगा । हालांकि सूत्र बताते है कि इस घोटाले के उजागर होने के बाद से मंत्रालय में मेडिकल बिल लगाने वाले कर्मचारियों और मेडिकल बिल के नाम आहरित होने वाली राशिमें कमी आई हैं, क्योंकि कर्मचारियों को जांच में पकड़े जाने का भय सताने लगा है। चूंकि कर्मचारियों की संख्या इस मामले में हजार से ऊपर है इसलिए सभी मिलकर सामान्य प्रशासन विभाग से इस पर पर्दा डालने में लगे है ।
इनका कहना है :
शिवराज सरकार में चहुंओर भ्रष्टााचार का बोलबाला है, जहां नजर डालिए वहीं भ्रष्टाचार नजर आता है । हमने फर्जी मेडिकल घोटाले का मामला विधानसभा में उठाया था, जिसका मुझे आज तक जवाब नहीं मिला है । कांग्रेस सरकार बनने पर इस घोटाले की उच्च स्तरीय जांच कराते हुए दोषियों के विरूद्ध दण्डात्मक कार्यवाही की जावेगी ।
चौधरी सुजीत मेर सिंह
विधायक
चौरई विधानसभाs