आज यानी गुरुवार को मंदसौर का गौरव दिवस मनाया जा रहा है। इतिहासकार और विद्वानों ने ढाई हजार साल पुराने इतिहास के पन्नों को खंगालने के बाद यह तारीख तय की है। मंदसौर गौरव दिवस के मौके पर हम आपको इस तारीख को चुनने की कहानी के साथ ही राजा यशोधर्मन के शौर्य को भी बता रहे हैं। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान गौरव दिवस के मौके पर अष्टधातु से निर्मित सम्राट यशोधर्मन की प्रतिमा का अनावरण भी करेंगे।
सबसे पहले जान लीजिए क्यों खास है यह तारीख
इतिहासकारों
ने मंदसौर से जुड़े दो हजार साल पुराने इतिहास को करीब तीन महीने तक
खंगाला। वरिष्ठ इतिहासकार सुरेंद्र लोढ़ा की पुस्तक ‘युगों से युगों तक
दशपुर’ से भी मदद ली गई। इतिहासकार डॉ. कैलाशचंद्र पांडेय ने भी इसमें काफी
खोजबीन की। इतिहास के पन्ने पलटे तो पता चला कि मंदसौर के प्राचीन नाम
दशपुर पर अधिकांश समय औलिकार वंश का शासन रहा। उस समय के शासक वंधुवर्मन
थे। आगे चलकर औलिकार वंशज सम्राट यशोधर्मन हुए, जिन्होंने खिलचीपुरा में
सूर्य मंदिर की स्थापना की। उस समय देश में केवल चार जगह सूर्य मंदिर थे।
पौष माह में शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी पर विक्रम संवत 493 ईस्वी सन् 436 में सूर्य मंदिर की स्थापना की गई थी। इसे अंग्रेजी तारीख 8 दिसंबर में बदलने का कार्य डॉ. रामपाल शुक्ल ने किया। वे महाराजा सयाजीराव यूनिवर्सिटी वडोदरा के ट्रेडिशनल संस्कृत स्टडीज संस्कृत महाविद्यालय के अध्यक्ष हैं। इस तरह मंदसौर के खिलचीपुरा स्थित प्राचीन सूर्य मंदिर के स्थापना की तिथि की गणना से निकली तारीख को मंदसौर के गौरव दिवस के रूप में लिया गया।
सम्राट यशोधर्मन दशपुर को बनाया था मालवा की राजधानी
औलिकार
वंशज सम्राट यशोधर्मन का इतिहास में ज्यादा उल्लेख नहीं मिलता, लेकिन
मालवा क्षेत्र पर औलिकार वंश का सम्राज्य का जिक्र है। यहां औलिकार
वंधुवर्मन का शासन था। आगे चलकर इन्हीं औलिकार वंश के सम्राट यशोधर्मन हुए।
वे परम शिव भक्त थे, जिन्होंने दशपुर को मालवा की राजधानी बनाया।
खिलचीपुरा का सूर्य मंदिर, सोंधनी का विजय स्तम्भ, शिलालेख और प्राचीन
प्रतिमाएं सम्राट यशोधर्मन के शौर्य को बताती हैं।
इतिहास बताता है कि वे अच्छे शासक और अपनी प्रजा की रक्षा करने वाले महान योद्धा थे। उन्होंने मिहिरकुल को पराजित किया। इसके साथ ही शक्तिशाली हूणों और गुप्तों को पराजित किया। हूणों पर विजय सम्राट यशोधर्मन के शौर्य पराक्रम को दर्शाती है।
शिलालेखों और प्रतिमाओं की शैली से तैयार हुआ सम्राट यशोधर्मन का स्कैच
सम्राट
यशोधर्मन के स्कैच को लेकर भी लंबी बहस और मेहनत की गई। शुरुआती स्कैच को
69 वर्षीय आर्टिस्ट्स पन्नालाल जैन ने तैयार किया। इसके बाद इंजीनियर शोभित
धींग ने इसमें कुछ चेंज किए। डिजाइन बनाने में मंदसौर के पुरातत्व
शिलालेख, प्रतिमाओं के साथ जिले के इतिहास को गहराई से जानने वालों का
सहयोग लिया गया।
स्कैच बनाने से लेकर प्रतिमा तैयार होने तक कई बार डिजाइन में छोटे-मोटे परिवर्तन किए गए। आदमकद प्रतिमा में कॉपर, आयरन, पीतल, बीड़ समेत अष्ट धातुओं का उपयोग किया गया।कलेक्टर गौतम सिंह के मुताबिक बैठक में तय हुआ था कि प्रतिमा अलग हो, अधिकांश जगह राजाओं की प्रतिमा घोड़े पर और तलवार हाथों में लिए होती है। हमने सम्राट यशोधर्मन में उनके शौर्य पराक्रम को दर्शाया है। यहां प्राचीन मंदिरों और अन्य शिलालेख प्रतिमाओं के आधार पर काल्पनिक स्कैच तैयार करवाया गया है।
बाजुओं पर नाग, कंधे पर जनेऊ, कानों में कुंडल, मस्तक पर शिव तिलक
सम्राट
यशोधर्मन पर शिव भक्त थे। इसी लिहाज से उनके मस्तक पर शिव तिलक लगाया गया
है। अफजलपुर में निकली सूर्य प्रतिमा के मुकुट के आधार पर ही मुकुट तैयार
किया गया है। शक्तिशाली बाजुओं में नाग के बाजूबंद और कांधे पर जनेऊ धारण
है। 6वीं शताब्दी के इतिहास के अनुसार ही यशोधर्मन की मूंछों और उनके खड़ाऊ
काे तैयार किया गया है।
शक्तिशाली वीरों की तरह बाजू और मजबूत सीना, उनके शौर्य को दिखाता है। हाथों में धनुष, कंधे पर तरकश लिए खड़ी राजा यशोधर्मन की प्रतिमा दशपुर का इतिहास खुद-ब-खुद बताती है। प्रतिमा विजय स्तम्भ की आकृति पर खड़ी की गई है, जिसमें चारों ओर सिंह बनाए गए हैं। इसी तरह के सिंह सिंधनी स्थित विजय स्तम्भ में है।