क्या आपने किसी भूत को गवाही देते सुना है, नहीं ना. लेकिन उत्तर प्रदेश के मेरठ में एक बार ऐसा हो चुका है. यहां हत्या के एक मामले में भूत ने पुलिस के सामने गवाही दी थी, दो पेज का लिखित स्टेटमेंट भी दिया था. यह स्टेटमेंट ऐसा था कि इसके विरोध में बचाव पक्ष की ओर से पेश किए सभी सबूत और गवाह एक मिनट भी नहीं टिक सके. वादा किया था कि कोर्ट में भी पेशी पर आएगा, लेकिन बार बार समन जारी होने के बाद भी यह भूत कोर्ट में हाजिर नहीं हुआ. नौबत यहां तक आ गई कि जज ने उसके खिलाफ गैर जमानती वारंट जारी कर दिया. पुलिस को निर्देश तक दे दिया कि अगली तारीख पर वह पेश नहीं हुआ तो विवेचक की वर्दी उतर जाएगी.
क्राइम सीरीज में आज हम उसी भूत की गवाही और उस मुकदमे की पूरी कहानी बताने जा रहे हैं. वह सर्दियों के दिन थे, संभवत: दिसंबर या जनवरी का महीना रहा होगा. इस हाड़ कंपाने वाली ठंड के बावजूद मेरठ की जिला अदालत में सीजेएम कोर्ट के बाहर खड़ी किठोर थाने की पुलिस के माथे पर पसीना छलक रहा था. दरोगा से लेकर इंस्पेक्टर तक कोर्ट रूम के बाहर खड़े थे, उन्हें समझ में नहीं आ रहा था कि जज के सवालों का सामना कैसे करें. दरअसल भूसे में से सुई तक ढूंढ निकालने वाली पुलिस की बेचैनी इसलिए थी कि हत्या के मामले में चश्मदीद गवाह उन्हें ढूंढे नहीं मिल रहा था.
हत्या के जिस मामले में उसकी पेशी होनी थी, वह पूरा का पूरा मुकदमा ही उसकी गवाही पर टिका था. दरअसल भूत ने अपना लिखित बयान ही ऐसा दिया था कि उसके आगे आरोपियों की ओर से पेश की गई हर दलील खारिज हो चुकी थी. सभी गवाह और सबूत झूठे साबित हो चुके थे. अब इस भूत की बात करने से पहले उस मुकदमे के बारे में जान लेना जरूरी है. बता दें कि 12 जुलाई साल 2018 की दोपहर का वक्त था. मेरठ में एसएसपी कार्यालय के फोन की घंटी बजती है. जैसे ही टेलीफोन ड्यूटी में तैनात पुलिसकर्मी फोन रिसीव करता है, फोन करने वाला व्यक्ति बोलता है कि मवाना रोड स्थित नई बस्ती में करीब दर्जन भर लोगों ने फरमान नामक व्यक्ति की पीट पीटकर हत्या कर दी है.
इतनी बात के बाद फोन कट जाता है. पुलिसकर्मी तत्काल मामले की जानकारी एसएसपी को देता है और एसएसपी के आदेश पर एसपी सिटी, संबंधित सीओ और किठोर थाने की पुलिस मौके पर पहुंच जाती हैं. वहां पहुंचने पर सूचना सही पाई जाती है. पुलिस शव को कब्जे में लेती है और पोस्टमार्टम के लिए भेज देती है. इसके बाद फरमान के भाई इरफान की ओर से किठोर थाने में हत्या और मारपीट की धाराओं में चार नामजद समेत 8 लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज होता है.
90 दिन के अंदर पेश हुई थी चार्जशीट
मामले की जांच थाने के दरोगा विमल कुमार को दी जाती है. विमल कुमार तेजी से मामले की पूरी जांच करते हैं और 90 दिन के पहले ही मजबूत गवाह, ठोस सबूत और सटीक तथ्यों के साथ कोर्ट में चार्जशीट पेश कर देते हैं. केस डायरी इतनी मजबूत होती है कि ट्रॉयल से पहले ही बचाव पक्ष को लगने लगता है कि अब सजा होनी तय है. लेकिन इसी बीच एक अड़चन आ जाती है. दरअसल किसी भी मुकदमे में आरोप तय करते समय कोर्ट में चश्मदीद गवाह के बयान होते हैं. इसके लिए कोर्ट से इस मुकदमे के चश्मदीद गवाह महफूज को समन जारी होता है, लेकिन वह रिसीव नहीं होता.
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इसके बाद कोर्ट थाना प्रभारी को वार्निंग देकर दोबारा समन जारी करता है. इस बार पता चलता है कि बताए गए पते पर महफूज नाम का कोई आदमी रहता ही नहीं. यह सुनकर जज नाराज हो जाते हैं. कहते हैं कि ऐसा कैसे हो सकता है कि कोई व्यक्ति दो पेज की गवाही करता है, वो भी ऐसी गवाही, जिसकी काट विपक्ष के पास नहीं है, और वह पुलिस को ढूंढे नहीं मिल रहा. पुलिस कोई जवाब नहीं दे पाती है. ऐसे में कोर्ट से चश्मदीद गवाह महफूज के नाम गैर जमानती वारंट जारी हो जाता है. इसी के साथ कोर्ट पुलिस को भी हिदायत देती है कि अगली तारीख पर गवाह की पेशी नहीं हुई तो दरोगा की वर्दी उतर जाएगी.
परिवार को हिरासत में लेने पर सामने आया राज
अब पुलिस उस व्यक्ति की तलाश में जुट जाती है. इसी क्रम में पुलिस एक परिवार को उठाकर लॉकअप में डाल देती है और धमकी देती है कि अगली तारीख पर महफूज अदालत में पेश नहीं हुआ तो उन्हें जेल भेज दिया जाएगा. कोई रास्ता ना देखकर यह परिवार एक वकील की मदद लेता है और अगली तारीख पर सुनवाई शुरू होती है. कोर्ट में इस मुकदमे का नंबर आते ही लॉकअप में बंद परिवार के वकील पेश होते हैं और विवेचक विमल कुमार से पूछताछ की अनुमति मांगते हैं. वहीं जज की अनुमति मिलने के बाद वह पूछते हैं कि क्या सही में उन्होंने महफूज से बात कर उन्हें गवाह बनाया था.
15 साल पहले हो चुकी थी महफूज की मौत
विवेचक कहते हैं कि हां, मैं उनके घर गया था और उनके घर के बाहर ही उन्होंने अपना बयान अपने हाथों से लिखकर दिया. उन्होंने पूरी वारदात को सिलसिलेवार बताया. फिर वकील इस बातचीत की तारीख पूछते हैं, तो विवेचक घटना के दो दिन बाद की तारीख बता देते हैं. लेकिन ठीक उसी वक्त वकील की ओर से जज की टेबल पर एक कागज बढ़ा दिया जाता है, जो महफूज का डेथ सार्टिफिकेट होता है. इसमें लिखा होता है कि महफूज की मौत 16 साल पहले हो चुकी है. मामला सामने आते ही अदालत में हड़कंप मच जाता है. अगले दिन यह खबर सारी मीडिया में होती है और पुलिस की काफी किरकिरी होती है.
एसपी ग्रामीण ने की मामले की दोबारा से जांच
घटना को जानकर एसएसपी नाराज हो जाते हैं और एसपी ग्रामीण राजेश कुमार को मामले की जांच के आदेश देते हैं. इस जांच में पता चलता है कि विवेचक ने फर्जी गवाह बनाया था. दरअसल आराम तलब हो चुके दरोगा ने थाने में ही बैठकर फोन पर किसी व्यक्ति से बात की. उस व्यक्ति ने अपना नाम महफूज बताते हुए घटना का आंखों देखा हाल बता दिया. चूंकि सारे विवरण सही थे, इसलिए दरोगा को भी लगा कि महफूज भी सही व्यक्ति होगा, लेकिन कोर्ट में पेशी के दौरान पता चला कि उसने महफूज के किसी भूत से बात कर ली थी. खैर, इस मामले में एसपी ग्रामीण ने बाद में सप्लीमेंट्री चार्जशीट पेश की और इसके बाद अदालत में आरोप तय हुए. फिलहाल यह मामला एडीजे कोर्ट में विचाराधीन है.