16 साल से इजराइल ने गाजा को चारों तरफ से घेरकर रखा है। अमेरिका और पश्चिमी देशों की वजह से कोई हमारे हक में आवाज नहीं उठाता, पूरी दुनिया ने हमें नजरअंदाज किया। हमने ठाना है कि अब ऐसा नहीं होगा।_…7 अक्टूबर को इजराइल पर 5 हजार रॉकेट दागने के बाद ये बातें एक ऑडियो टेप ब्रॉडकास्ट में फिलिस्तीन के कमांडर मोहम्मद दाइफ ने कही। रॉयटर्स की रिपोर्ट के मुताबिक इजराइल पर हुए हमले की पूरी प्लानिंग के पीछे मोहम्मद देइफ का हाथ है।
देइफ 2 साल पहले अल-अक्सा मस्जिद में इजराइली सेना की रेड को अपने दिल और दिमाग से निकाल नहीं पा रहा। मस्जिद में नमाजियों पर होते हमलों को देखने के बाद उसने ठान लिया था कि वो इसका बदला जरूर लेगा। 7 अक्टूबर को इजराइल में क्या होने वाला है, इसकी जानकारी हमास के चंद लीडर्स के पास ही थी। इसे इतना सीक्रेट रखा गया था कि हमास के सरपरस्त ईरान तक को इसकी भनक नहीं लगी। ईरान को सिर्फ इतनी जानकारी थी कि कुछ बड़ा होने वाला है। अल-अक्सा मस्जिद के विवाद के बाद इजराइल को गुमराह किया गया। उसे इस भ्रम में रखा गया कि हमास विवाद को आगे बढ़ाने की बजाय, गाजा पट्टी के आर्थिक विकास पर फोकस करना चाहता है। हमास के एक नेता के मुताबिक वो 2 साल से इस जंग की तैयारी में जुटे थे। रॉयटर्स के मुताबिक हमले का फैसला देइफ और गाजा में हमास के लीडर येहया सिनवार ने मिलकर किया था। हालांकि इसका मास्टरमाइंड देइफ ही था। उसी ने पूरी प्लानिंग की थी कि हमले कब और कैसे किए जाएंगे।
देइफ 2002 से हमास के मिलिट्री विंग का हेड है। मोहम्मद देइफ 1965 में गाजा के खान यूनिस कैंप (रिफ्यूजी कैंप) में पैदा हुआ था। उस समय गाजा पर इजिप्ट का कब्जा था। 1950 में इजराइल में हथियार लेकर घुसपैठ करने वालों में उसका पिता भी शामिल था। बचपन से ही उसने अपने रिश्तेदारों को फिलिस्तीन की लड़ाई लड़ते हुए देखा था। देइफ ने गाजा की इस्लामिक यूनिवर्सिटी से पढ़ाई की है। 20 की उम्र के बाद देइफ की कोई तस्वीर सामने नहीं आई है। हमास की स्थापना 80 के दशक के अंत में हुई। तब देइफ की उम्र करीब 20 साल थी। ये वो समय था जब वेस्ट बैंक और गाजा पट्टी पर इजराइल के कब्जे के खिलाफ पहले फिलिस्तीनी इंतिफादा या विद्रोह की शुरुआत हुई थी। इस दौरान देइफ को आत्मघाती बम विस्फोटों में दर्जनों लोगों की मौत के लिए जिम्मेदार ठहराया गया था।इसके बाद 1993 में इजराइल-फिलिस्तीन से हजारों मील दूर अमेरिका में एक समझौता हुआ। इसे दुनिया ओस्लो समझौते के नाम से जानती है। ये शांति समझौता इजराइल और फिलिस्तीनियों का प्रतिनिधित्व करने वाली संस्था फिलिस्तीन लिबरेशन ऑर्गनाइजेशन (पीएलओ) के बीच हुआ था। इस समझौते के तहत 10 सितंबर, 1993 को PLO ने इजराइल को मान्यता दे दी। बदले में इजराइल ने भी बड़ा फैसला लिया। उसने PLO को फिलिस्तीन का आधिकारिक प्रतिनिधि माना, लेकिन हमास को ये बात रास नहीं आई। उसका कहना था कि फिलिस्तीन को वो सारी जमीन वापस की जानी चाहिए जो उसके पास 1948 के अरब-इजराइल युद्ध के पहले तक थी। ओस्लो समझौते के खिलाफ 1996 में इजराइल में एक अटैक हुआ। इसमें 50 से ज्यादा लोग मारे गए थे। इसका आरोप भी देइफ पर लगा।
देइफ सालों से इजराइल की “मोस्ट वांटेड” लिस्ट में टॉप पर है। इजराइल ने 2021 में उसे 7 बार मारने की कोशिश की, लेकिन नाकाम रहा। अमेरिका का विदेश विभाग उसे आतंकवादी घोषित कर चुका है। अमेरिका के मुताबिक 2014 में जब इजराइल और हमास के बीच जोरदार संघर्ष हुआ, उस दौरान देइफ ने ही हमास की आक्रामक रणनीति बनाई थी। 2014 में, इजराइली सेना ने एक घर पर हमले कर देइफ को जान से मारने की कोशिश की। इसमें भी वो नाकाम रही, हमले में देइफ की पत्नी और सात महीने का बेटा और एक 3 साल की बेटी मारी गई। न्यूयॉर्क टाइम्स ने सुरक्षा मामलों के एक्सपर्ट और इजराइली पत्रकार रोनेन बर्गमैन के मुताबिक देइफ हमास का एकमात्र मिलिट्री कमांडर है जो इतने लंबे समय से जीवित है। इतनी कोशिशों के बावजूद देइफ के न मारे जाने की वजह से उसको ‘बुलेट प्रूफ लीजेंड’ कहा जाता है। फाइनेंशियल टाइम्स की रिपोर्ट में इजराइली अधिकारियों के हवाले से कहा गया कि देइफ ने यरुशलम और तेल अवीव में बसों और सैनिकों को टारगेट किया है।