भारतीय संविधान,राष्ट्र के संकल्प की सत्य गाथा
संत कबीर नगर।
भारत का संविधान केवल कागज पर लिखी हुई विधियों का संग्रह नहीं, बल्कि यह स्वतंत्रता संग्राम की तपस्या, विचारों की मंथन प्रक्रिया और राष्ट्र निर्माण की सामूहिक चेतना का परिणाम है। यह भ्रम कई बार फैलाया जाता है कि भारतीय संविधान केवल डॉ. भीमराव अंबेडकर द्वारा लिखा गया था, लेकिन ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार संविधान का निर्माण समूहिक प्रयास और राष्ट्र-स्तरीय संवाद की उपज है।
भारतीय संविधान निर्माण के लिए 9 दिसंबर 1946 को संविधान सभा की स्थापना हुई। इस सभा के स्थायी अध्यक्ष डॉ0 राजेन्द्र प्रसाद बनाए गए, जिनकी भूमिका थी सभा की बैठकें संचालित करना, सदस्यों में समन्वय बनाना और अंतिम दस्तावेज को संविधान के रूप में स्वीकार कराना। उन्होंने सभी विचारधाराओं को एक मंच पर लाकर लोकतांत्रिक दृष्टिकोण से संविधान का मार्ग प्रशस्त किया।
डॉ0भीमराव अंबेडकर को ड्राफ्टिंग कमेटी का 29 अगस्त 1947 को अध्यक्ष नियुक्त किया गया। इस सीमित ने संविधान का प्रारूप तैयार किया, अंबेडकर ने अपने विधिक ज्ञान और सामाजिक दृष्टिकोण से संविधान को एक समावेशी और संतुलित स्वरूप प्रदान किया उनका योगदान अब अप्रतिम था लेकिन यह यह भी सत्य है कि वह अकेले लेखक नहीं थे सीमित में छ: सदस्य और भी थे, एन गोपाला स्वामी अय्यर, कन्हैया लाल मानिक लाल मुंशी, अल्लदारी कृष्ण स्वामी अय्यर, बी एल मित्तल, डी पी खेतान और मोहम्मद सादुल्ला। इसमें पंडित जवाहरलाल नेहरू ने संविधान की उद्देश्य प्रस्ताव को रखा जो प्रस्तावना की नींव बना। सरदार वल्लभभाई पटेल ने भारतीय प्रशासनिक ढांचे और राज्यों के एकीकरण में निर्णायक योगदान दिया। महात्मा गांधी भले ही संविधान सभा का हिस्सा नहीं थे पर उनके विचार ग्राम स्वराज और सामाजिक समरसता हर बिंदु में प्रतिबिंबित होता है। संविधान बनाने में दो वर्ष 11 महीने और 18 दिन लगे कल 166 बैठकों में गहन चर्चा हुई करीब 7635 संशोधन प्रस्ताव आए जिसमें से 2473 पर विचार किया गया और 284 संशोधन स्वीकार हुए। यह कह देना कि संविधान केवल डॉक्टर अंबेडकर ने लिखा न केवल ऐतिहासिक रूप से गलत है बल्कि अन्य राष्ट्रीय नेताओं के योगदान को भी अपमानित करना है। डॉ राजेंद्र प्रसाद की अध्यक्षता पंडित नेहरू की दृष्टि सरदार पटेल की प्रशासनिक कुशलता और संविधान सभा के सभी सदस्यों के योगदान से हुआ। भारतीय संविधान एक समावेशी राष्ट्र निर्माण का दस्तावेज है इसमें ना कोई एक जाती है ना एक व्यक्ति यह भारत की आत्मा है जो विविधता में एकता, न्याय, स्वतंत्रता, समता और बंधुत्व की भावना से ओत प्रोत है इसे किसी एक नाम तक सीमित करना इसके गौरव को सीमित करना होगा।





