क्रिकेट हमारा जुनून है और सचिन इसके भगवान हैं। क्रिकेट का भगवान उनके रहते पुनर्जन्म लेगा, इसकी आस हम सबको थी। और सचिन के पिच पर रहते इसकी झलक दिखने लगी। विराट कोहली ने अंडर 19 वर्ल्ड कप में ही छाप छोड़ दी थी। लेकिन 18 अगस्त 2008 के दिन अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में पदार्पण के बाद कोहली मैदान पर विराट रूप धारण करते गए। आज शतकों के शतकवीर सचिन के रिकॉर्ड के पास मंडरा रहे हैं विराट कोहली। सचिन 24 साल तक देश के लिए खेले। जब वो 1987 में आए तो 16 साल के थे और क्रिकेट को अलविदा कहा तो 40 साल के थे। इस बीच भाई अजीत घर का मैनेजमेंट करते रहे और पत्नी अंजलि परिवार संभालती रहीं। सचिन हमें हर शॉट पर झुमाते रहे। आज कोहली क्रिकेट के भगवान का रिकॉर्ड तोड़ने के आस-पास हैं। 15 साल तो वो भी मैदान पर बिता चुके। सचिन का रिकॉर्ड टूट भी जाए लेकिन ये शख्स क्या सचिन की परछाई के बराबर भी हो सकता है?
सम्मान सेंचुरी की मोहताज नहीं
मैदान पर दिल जीतो। देश के लिए खेलो तो जान लगा दो। सचिन की तरह बैटिंग के मामले में विराट में वो सब कुछ है। दुनिया के दिग्गज बोलर उनसे खौफ खाते हैं। लेकिन क्रिकेट सिर्फ शॉट मारने तक सीमित नहीं है। सफल होने के लिए संयम जरूरी है। धैर्य जरूरी है। एकाग्रता की जरूरत है। जैसे बोलर के पीछे वाली स्क्रीन के आस-पास भी कोई दिखता है तो बैट्समैन पीछे हट जाता है, वैसे ही हर किसी भटकाव से दूर रहना जरूरी है। जब आप ऐसा करते हैं तो रेस्पेक्ट पाते हैं। आदर करना और सम्मान पाना किसी सेंचुरी की मोहताज नहीं है। लेकिन सेंचुरी के साथ सम्मान भी मिले तो बनता है सचिन तेंदुलकर।
विराट का अहंकार
आज भी सचिन मैदान पर हैं। हां रोल बदला हुआ है। एक वीडियो देख रहा था। किसी आईपीएल मैच के बाद मुंबई इंडियंस के खिलाड़ी और सपोर्ट स्टाफ दूसरी टीम से हाथ मिलाते हैं। जब जोंटी रोड्स की बारी आती है तो वो सचिन का पैर छूने के लिए झुकते हैं। सचिन वही सबको खुश करने वाले अंदाज में मुस्कुराते हैं और उन्हें रोकते हैं। एक और तस्वीर देख रहा था। विराट का एक फैन जो उनसे उम्र में कहीं बड़ा था। वो पैर छूता है। और भीष्म की तरह विराट कोहली उसकी पीठ पर हाथ रख उसे आशीर्वाद देते हैं। ये फर्क है सचिन और विराट का। विराट का अहंकार उनके खेल पर हावी है। सचिन ने एक से बढ़कर एक जीत दिलाई। वो दौर भी याद है जब सचिन ही जीत की इकलौती आस होते। और तब टीम इंडिया जीतती तो भी सचिन उतने ही शांत। कभी अहंकार को हावी नहीं होने दिया।
लात दिखाने की जाहिलियत
दक्षिण अफ्रीका में सैंड गेट और ऑस्ट्रेलिया में मंकी गेट में सचिन को जब फंसाने की कोशिश हुई तो पूरा देश उनके साथ खड़ा था। लेकिन कभी सचिन के व्यवहार के कारण अंपायर को बीच में आना पड़े, हमने तो नहीं देखा। देश के लिए आक्रामक बनो। माही भी थे। गांगुली ने भी क्रिकेट का मक्का कहे जाने वाले मैदान पर शर्ट उतार दी थी। मैदान पर गलत को गलत कहने का तरीका और विरोध जताना अलग बात है। लेकिन लड़ जाना, लात दिखाना जाहिलियत की निशानी है। ये विराट कोहली समझ लें। मैं नहीं कहता कि लखनऊ जायंट्स और आरसीबी के मैच के बाद जो कुछ हुआ उसके लिए गौतम गंभीर जिम्मेदार नहीं हैं। लेकिन विराट में तो हम सचिन ढूंढते हैं न। वो तो नहीं दिखता। ये बात भी सच है कि 2009 में उनकी पहली सेंचुरी के बाद गौतम गंभीर ने उन्हें अपना मैन ऑफ दे मैच दे दिया। ये भी सच है कि 2013 के आईपीएल के दौरान ही दोनों में ठन गई। पर ये तो कुछ उदाहरण हैं। बात-बात पर उलझना, खुद के आउट होने पर झुंझलाना, बैट फेंक देना, पैवेलियन और दर्शकों की ओर इशारे करना। किसी के आउट होने या हताश होने पर वो ओठों कि लिप्सिंग। वो सबको समझ आती है विराट। दिल्ली की चर्चित गालियां जो हैं।