जेपी मूवमेंट जोर पकड़ रहा था। अलग-अलग प्रदेशों में जाकर जयप्रकाश नारायण सभाएं कर रहे थे और युवाओं को इंदिरा सरकार के खिलाफ खड़ा कर रहे थे। इस बीच सत्यपाल मलिक ने उत्तर प्रदेश विधानसभा में सरकार पर बड़ा आरोप लगा दिया। उनके इस आरोप ने जहां राजनीति में बवंडर ला दिया, वहीं तत्कालीन मुख्यमंत्री हेमवती नंदन बहुगुणा व्यक्तिगत तौर पर भी काफी आहत हुए। उन्होंने इन आरोपों की तस्दीक के लिए जेपी से पत्राचार किया, तो जेपी ने ऐसी किसी बात से इनकार कर दिया और आश्चर्य जताया कि न जाने क्यों सत्यपाल मलिक ने ऐसी बात कही है। सत्यपाल मलिक 1974 से 1977 तक उत्तर प्रदेश विधानसभा के सदस्य थे। बात जून 1974 की है। उन्होंने अपने भाषण के दौरान कहा कि जब 22 और 23 जून को जेपी इलाहाबाद (अब प्रयागराज) आए थे तो प्रदेश की हेमवती नंदन बहुगुणा सरकार ने उनके सरकारी गेस्ट हाउस में रुकने में व्यवधान डाला और आयोजन असफल करवाने का प्रयास किया।
मिल मालिक ने भरवाया पानी
आम तौर पर उद्योगपतियों के सरकार से खुले तौर पर टकराने के मामले नहीं दिखते। लेकिन कभी-कभी ऐसी सूरत आ जाती है। 1957 में संपूर्णानंद सरकार में हेमवती नंदन बहुगुणा को श्रम और उद्योग मंत्री बनाया गया था। फैजाबाद (अब अयोध्या) के मसौधा चीनी मिल के मजदूर अपनी मांगों को लेकर आंदोलनरत थे। चीनी मिल मालिक लक्ष्मीकांत झुनझुनवाला मजदूरों की मांगें न मानने पर अड़े हुए थे। मंत्री बनने से पहले कई मजदूर संगठनों के पदाधिकारी रहे हेमवती नंदन बहुगुणा को जब पता चला कि मिल मजदूरों ने एक सभा रखी है, तो उन्होंने सभा में शामिल होने का फैसला किया। जब झुनझुनवाला को पता चला कि सभा में बहुगुणा आने वाले हैं तो वह सोच में पड़ गए। उन्हें पता था कि मंत्री के सभा में शामिल होने से मजदूरों की मांगें स्वीकार करने का दबाव बहुत बढ़ जाएगा। लेकिन मंत्री को सभा में शामिल होने से रोकते भी तो कैसे। आखिर उन्हें एक उपाय सूझा। सभास्थल की मिल्कियत चीनी मिल की ही थी। इसलिए उन्होंने सभास्थल में पानी भरवा दिया ताकि सभा हो ही न पाए। बहुगुणा को यह बात तब पता चली, जब वह मजदूरों के सामने थे। उन्होंने कह दिया कि अब जब वह आ ही गए हैं तो सभा तो होगी ही। उन्होंने मजदूरों से गेट पर चलने को कहा। वहां बहुगुणा ने भाषण में ही झुनझुनवाला को चेताया कि आज जब मैं सरकार में हूं तो किसी भी मालिक को ऐसा नहीं करना चाहिए। अगर उन्हें लगता था कि मुझे यहां नहीं आना चाहिए तो वह खुद आकर मुझसे बात करते। अब झुनझुनवाला को समझ आ गया कि उन्होंने गलती कर दी है। वह फौरन मंत्री के पास पहुंचे। कहने की जरूरत नहीं कि उन्हें मजदूरों की बातें भी माननी पड़ीं।
फिर आपका क्या काम?
जिस समिति के अध्यक्ष खुद मुख्यमंत्री हों, वहां बिना उनकी इच्छा जाने फैसले लिए जाएं, ऐसा तो राजनीति में मुमकिन नहीं दिखता। लेकिन हेमवती नंदन बहुगुणा जिन मसलों को नहीं जानते थे, उन पर विशेषज्ञों की राय को सर्वोपरि रखते थे। जमींदारी उन्मूलन के बाद सरकार के पास काफी ऐसी जमीन आ गई थी, जिस पर खेती हो सकती थी। लेकिन उन्हें भूमिहीन किसानों को कैसे दिया जाए, इसके लिए कोई नीति नहीं थी। इसलिए मुख्यमंत्री बनने के बाद हेमवती नंदन बहुगुणा आचार्य विनोबा भावे से इस काम में मदद मांगने वर्धा स्थित ब्रह्मविद्या मंदिर पहुंचे। उन्होंने अपनी मंशा उनसे साझा की और मदद मांगी। काफी विचार के बाद आचार्य ने भूदान आंदोलन से जुड़े रहे आईसीएस आरके पाटिल को लखनऊ भेजने का वादा किया। जब पाटिल लखनऊ आए तो मुख्यमंत्री ने एक समिति बनाई। इसके अध्यक्ष वह स्वयं थे जबकि आरके पाटिल को उसका उपाध्यक्ष बनाया गया। उन्हें बाकायदा अधिकार दिए गए। कैबिनेट की बैठकों में वह हिस्सा लेते। कैलाश चंद्र मेहरोत्रा को समिति का सचिव बनाया गया। समिति में कई सरकारी अफसरों के अलावा भूदान आंदोलन से जुड़े तमाम लोग शामिल थे। जब पहली बैठक हुई तो आरके पाटिल ने मुख्यमंत्री से दिशा-निर्देश मांगे। मुख्यमंत्री ने छूटते ही कहा- अगर मैं यह काम कर सकता तो आपको यहां क्यों बुलाता? बहुगुणा के इस जवाब के बाद समिति ने औपचारिकताओं के बंधनों से मुक्त होकर काम शुरू किया। भूमि वितरण के जो सिद्धांत तब बने, वही अब भी मार्गदर्शक सिद्धांत हैं।