नई दिल्ली: कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश (Jairam Ramesh) ने पार्टी के पूर्व नेता गुलाम नबी आजाद (Ghulam Nabi Azad) को ‘मीर जाफर’ बताया है। उन्होंने आरोप लगाया है कि भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने आजाद को जम्मू-कश्मीर में कांग्रेस का वोट काटने के लिए खड़ा किया है। जब किसी को गद्दार बताना हो तो उसे देश में ‘मीर जाफर’ कहना काफी है। आखिर कौन था मीर जाफर? उसकी गद्दारी कहावतों का हिस्सा क्यों बन गई? क्यों इस शख्स का नाम सुनते ही लोग गुस्से से आग बबूला हो जाते हैं? आइए, यहां आपको हम इन सवालों का जवाब देते हैं।
सिराज उद-दौला क्यों बने आंखों की किरकिरी?
सिराज उद-दौला को आखिरी स्वतंत्र नवाब कहा जाता है। उनकी मौत होते ही अंग्रेजी हुकूमत ने अपनी नींव भारतीय उपमहाद्वीप में रख दी थी। अपनी मौत के समय सिराज उद-दौला की उम्र महज 24 साल थी। नाना की मौत के बाद उन्होंने बंगाल का तख्त संभाला था। यह वह समय था जब ईस्ट इंडिया कंपनी भारत में अपने पैर जमाने की कोशिश में लगी हुई थी। कम उम्र में सिराज उद-दौला को तख्तोताज मिलने से उनके कई रिश्तेदार जले-भुने जा रहे थे। इसमें उनकी खाला घसीटी बेगम भी शामिल थीं। नवाब बनने के थोड़े समय बाद ही सिराज उद-दौला ने उन्हें सलाखों के पीछे पहुंचा दिया था। मीर जाफर कई सालों से बंगाल का सेनापति था। यह और बात है कि सिराज ने मीर जाफर के बजाय मीर मदान को तवज्जो देना शुरू किया। इस बात से मीर जाफर बहुत ज्यादा नाराज था। असल में वह खुद नवाब बनने के सपने देख रहा था।
अंग्रेजों को दिखाया जंग में जीत का रास्ता
1757 में 23 जून को गुरुवार के दिन प्लासी की लड़ाई शुरू हुई। अंग्रेजों ने पूरी ताकत के साथ धावा बोला था। सिराज उद-दौला के साथ एक मजबूरी थी। वह अंग्रेजों के खिलाफ अपनी पूरी शक्ति नहीं लगा सकते थे। उन्हें उत्तर से अफगानी शासक अहमद शाह दुर्रानी और पश्चिम से मराठों के हमले का खतरा रहता था। लिहाजा, एक हिस्से के साथ सिराज उद-दौला प्लासी पहुंचे थे। मुठभेड़ में मीर मदान की मौत हो गई थी। सलाह के लिए नवाब ने मीर जाफर को खत भेजा। मीर जाफर ने जंग रोकने की सलाह दी। इसे मानकर नवाब ने जंग रोक दी। इस दौरान मीर जाफर ने रॉबर्ट क्लाइव को सारे हालात का जायजा दिया। इसके बाद अंग्रेजी सेना ने पूरे दम से धावा बोला। सिराज की सेना को संभलने तक का मौका नहीं मिला। वह बुरी तरह पराजित हो गई। मीर जाफर को अंग्रेजों ने ‘वफादारी’ का इनाम दिया। उसे बंगाल का ‘कठपुतली’ नवाब बना दिया गया। लेकिन, इतिहास में वह गद्दारी का सबसे बड़ा नाम बन गया। बंगाल के मुर्शिदाबाद में मीर जाफर की एक हवेली है। इसे नमकहराम ड्योढ़ी के नाम से जाना जाता है। प्लासी की लड़ाई में भागे सिराज उद-दौला को कुछ ही समय में मीर जाफर के सैनिकों ने पकड़ लिया था। 2 जुलाई 1757 को नमक हराम ड्योढ़ी में उन्हें फंसी दी गई थी। मीर जाफर के बेटे मीर मारन ने सिराज उद-दौला को फांसी का आदेश दिया था।
जयराम रमेश ने ‘मीर जाफर’ से आजाद की तुलना इसी गद्दारी के संदर्भ में की। गुलाम नबी आजाद लंबे समय तक कांग्रेस से जुड़े रहे हैं। कांग्रेस सरकारों में वह मंत्रिमंडल का हिस्सा रहे। हाल में आजाद ने कांग्रेस से अपने रास्ते अलग कर लिए। उन्होंने डेमोक्रेटिक आजाद पार्टी (डीएपी) के नाम से अपना दल बना लिया। रमेश ने आरोप लगाया है कि यह मोदी-शाह की जम्मू-कश्मीर में कांग्रेस के वोट काटने की रणनीति का हिस्सा है।
रमेश बोले, ‘मुझे नहीं पता कि आजाद की क्या योजनाएं हैं। मैंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि वह वास्तव में कांग्रेस छोड़ देंगे। यही वह पार्टी है जिसने लगभग 50 सालों तक उन्हें एक पहचान दी, उन्हें मुख्यमंत्री, केंद्रीय मंत्री, विपक्ष के नेता सहित पार्टी और सरकार में हर संभव पद दिया। लेकिन, मैंने कभी नहीं सोचा था कि वह मीर जाफर होंगे।’