मॉस्को: रूस और यूक्रेन की जंग को एक साल पूरा हो गया है। 24 फरवरी 2022 को जब रूस ने अचानक यूक्रेन पर हमला कर दिया तो हर कोई सन्न रह गया। किसी को भी समझ नहीं आ रहा था कि आखिर ऐसा क्या हो गया जो रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन इतना भड़क गए और उन्होंने युद्ध का ऐलान कर दिया। यह बात किसी से छिपी नहीं है कि रूस हमेशा से ही यूक्रेन पर दबाव बनाकर रखना चाहता था। पुतिन ने हमेशा उन वजहों का हवाला दिया जिसकी वजह से रूस, यूक्रेन पर कब्जा करना चाहता था। मगर सवाल फिर वही कि जब साल 2014 में भी रूस ने एक ऐसा ही प्रयास किया तो फिर पुतिन ने अपना सपना क्यों नहीं पूरा कर लिया? क्यों अचानक से शांत पुतिन इतने ज्यादा आक्रामक हो गए?
साल 2014 में भी रूस ने यूक्रेन पर सैन्य कार्रवाई की थी। उस समय क्रीमिया को अलगकर रूस की सीमा में मिला लिया गया। उस समय यूक्रेन की सेना काफी कमजोर थी। रूस के समर्थक वाले विक्टर यानुकोविच को यूक्रेन का राष्ट्रपति चुना गया था। विशेषज्ञों के मुताबिक उस समय पुतिन के पास पीछे हटने की वजह भी थी।
पुतिन ने इतने साल तक जो धैर्य, संयम बनाकर रखा, उसकी असली वजह साल 1990 के दशक में मिलती है। पुतिन उसी रणनीति को मान रहे थे जो उस समय बनाई गई थी। इस रणनीति के तहत यूरोप और अमेरिका के बीच दूरी बढ़ाकर, यूरोप में एक नया सुरक्षा ढांचा तैयार करना था। इसमें रूस सबसे बड़ा साझीदार होता और एक सम्मानित देश के तौर पर शामिल किया जाता।
सबको हमेशा से ही मालूम थी कि अगर यूकेन पर हमला हुआ तो पश्चिमी यूरोप देशों के साथ रूस के रिश्ते बिगड़ जाएंगे। साथ ही ये देश फिर अमेरिका के साथ हो जाएंगे। इसके अलावा इस बात की भी आशंका थी कि ऐसा कोई भी कदम उठाते ही रूस अकेला पड़ जाएगा। वह खतरनाक तौर पर चीन पर निर्भर हो जाएगा।
रूस की इस रणनीति को पश्चिमी देशों को तोड़ने की कोशिश माना गया। साथ ही यह समझा गया कि रूस पूर्व सोवियत संघ के देशों पर अपना प्रभाव कायम करना चाहता है। यह बात भी सच है कि अगर यूरोप का अपना कोई सिक्योरिटी सिस्टम होता तो फिर वह नाटो, यूरोपियन यूनियन और यूक्रेन पर रूस के हमले के खतरे को कम कर सकता था। साथ ही रूस का भी वर्चस्व बढ़ जाता।
साल 2012 में पुतिन ने लिखा था, ‘रूस एक महान यूरोपीय सभ्यता और ग्रेटर यूरोप का एक अविभाज्य हिस्सा है। हमारे नागरिक भी खुद को यूरोपियन महसूस करते हैं।’ यूरेशियन सभ्यता के तौर पर रूस की पहचान कायम करने के लिए अब इस नजरिए को खत्म कर दिया गया है। साल 1999 से 2000 के बीच जब पुतिन सत्ता में आए और साल 2020 में जब जो बाइडेन अमेरिका के राष्ट्रपति बने, रूस की रणनीति को काफी धक्का लगा है।
साल 2008 से 2012 तक जब दिमित्री मेदवेदेव रूस के अंतरिम राष्ट्रपति थे तो रूस ने नए यूरोपियन सुरक्षा क्रम पर बातचीत करने की कोशिशें की। पुतिन की मंजूरी के बाद उन्होंने नई यूरोपियन सुरक्षा संधि का प्रस्ताव रखा। इस संधि के बाद नाटो का विस्तार रुक जाता, प्रभावी ढंग से यूक्रेन और अन्य राज्यों की तटस्थता सुनिश्चित की, और रूस और प्रमुख पश्चिमी देशों के बीच समान शर्तों पर परामर्श। लेकिन पश्चिमी राज्यों ने इन प्रस्तावों को गंभीरता से लेने के बारे में सोचा तक नहीं ।
जर्मनी ने दी वॉर्निंग
साल 2014 में तत्कालीन जर्मन चांसलर एंगेला मर्केल ने चेतावनी दी थी कि अगर यूक्रेन पर हमला हुआ तो फिर रूस-जर्मनी के रिश्तों को गंभीर नतीजे भुगतने होंगे। इसके बाद डोनाबास से रूस ने अपने लड़ाकों को बुला लिया। इसके बदले जर्मनी ने यूक्रेन को हथियार देने ने मना कर दिया। फ्रांस ने मिन्स्क 2 समझौते में मध्यस्थता की और डोनाबास को यूक्रेन को लौटा दिया गया। जब साल 2016 में डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका के राष्ट्रपति चुने गए तो रूस की सारी उम्मीदें टूट गई।