नई दिल्ली: पूर्वोत्तर के तीन राज्यों त्रिपुरा, नागालैंड और मेघालय में विधानसभा चुनावों की दुदुंभी बज चुकी है। निर्वाचन आयोग ने बुधवार को तीनों राज्यों के चुनावों की तारीखों की घोषणा कर दी है। इसके साथ ही इन तीनों प्रदेशों में आदर्श आचार संहिता लागू हो गई है। पूर्वोत्तर की इन तीन बहनों को साधने के लिए हर राजनीतिक दल एड़ी-चोटी का जोर लगाएगा, क्योंकि अगले वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले हर किसी को अपना पिच तैयार करने की फिक्र है। केंद्र की सत्ता में आसीन भारतीय जनता पार्टी (BJP) का भी इन प्रदेशों में सरकार बनाने पर जोर होगा ताकि आम चुनाव और उससे पहले अन्य छह प्रदेशों में चुनावी हवा उसके पक्ष में बहने लगे। ध्यान रहे कि लोकसभा चुनाव से पहले त्रिपुरा, मेघालय, नागालैंड के अलावा मिजोरम, कर्नाटक, तेलंगाना, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में भी विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं।
सत्ता बचाने और छीनने की जद्दोजहद
निर्वाचन आयोग की घोषणा के मुताबिक, त्रिपुरा में 16 फरवरी को विधानसभा चुनाव के लिए मतदान होंगे। वहीं, नागालैंड और मेघालय के विधानसभा चुनावों के लिए वोटिंग की तारीख 27 फरवरी तय की गई है। इन तीनों प्रदेशों के चुनाव परिणाम 2 मार्च के आएंगे। पूर्वोत्तर भारत के ये तीन प्रदेश भले ही सीटों के लिहाज से छोटे हों, लेकिन चुनावी राजनीति के तकाजे से इनका महत्व कम नहीं है। बीजेपी त्रिपुरा की सत्ता में है, उसे वहां वापसी की चिंता होगी। वहीं, नागालैंड और मेघालय की सरकारों में भी भाजपा शामिल है। इन दोनों प्रदेशों में बीजेपी की चाहत होगी कि वो अपने दम पर सत्ता में आ जाए। वहीं, कांग्रेस और वाम दल इन प्रदेशों में बीजेपी से सत्ता वापस पाने की कोशिश करेंगे।
तीनों राज्यों का क्या हाल, जानें
त्रिपुरा, मेघालय और नागालैंड में विधानसभा की 60-60 विधनासभा सीटें हैं। जहां तक लोकसभा सीटों की बात है तो त्रिपुरा और मेघालय में दो-दो जबकि नागालैंड में एक सीट, यानी कुल पांच सीटें हैं। वहीं, पूर्वोत्तर भारत की सभी सात बहनों की बात है तो वहां लोकसभा की 24 सीटें हैं जिनमें 17 अभी बीजेपी के पास हैं। इन सात प्रदेशों में सिर्फ मिजोरम ही है जहां की सत्ता से बीजेपी बेदखल है। त्रिपुरा में बीजेपी सरकार है तो नागालैंड में नैशलिस्ट डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी (NDPP) और मेघालय में नैशनलिस्ट पीपल्स पार्टी का शासन है। एनपीपी पूर्वोत्तर भारत की अकेली क्षेत्रीय पार्टी है जिसे राष्ट्रीय दल की मान्यता प्राप्त है। बीजेपी नागालैंड और मेघालय की सरकार में शामिल है, लेकिन दोनों प्रदेशों में वह पिछली सीट से ड्राइविंग सीट पर आने को बेताब है। यहां पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस (TMC) ने बीजेपी की छटपटाहट बढ़ा दी है।
त्रिपुरा में सबसे रोचक होगी चुनावी जंग
त्रिपुरा में बीजेपी को वहां के आदिवासियों की पार्टी इंडिजेनस पीपल्स फ्रंट ऑफ त्रिपुरा (IPFT) से बड़ा खतरा है। विशेषज्ञों का मानना है कि आईपीएफटी, बीजेपी को इस बार के चुनाव में सीधी टक्कर दे सकती है। आईपीएफटी और त्रिपुरा मोथा के बीच विलय प्रस्ताव पर भी चर्चा चल रही है। त्रिपुरा मोथा प्रदेश के राजपरिवार के वंशज प्रद्योत किशोर माणिक्य देबराम की पार्टी है। वहीं, बीजेपी से गद्दी छीनने के लिए कांग्रेस और मार्क्सवादी कम्यूनिस्ट पार्टी (CPI)(M) भी हाथ मिला सकती है। 25 वर्षों तक अपने शासन वाले प्रदेश के फिसलकर बीजेपी के हाथ में चले जाने की कसक सीपीएम को अब भी सता रही है। उसे पता है कि अगर बीजेपी ने वापस सत्ता में आ गई तो वहां से पार्टी को आगे उखाड़ पाना और भी कठिन हो जाएगा। ध्यान रहे कि बीजेपी ने 2018 के विधानसभा चुनाव में वामदल से त्रिपुरा की सत्ता छीनी थी।