नई दिल्ली: दौलतमंदों के शौक आपको पानी के लिए तरसा सकते हैं। हाल में इस पर एक स्टडी आई है। इसमें एक अहम पहलू पर रोशनी डाली गई है। स्टडी कहती है कि गरीब लोग ज्यादातर पानी बुनियादी जरूरतों पर खर्च करते हैं। मसलन, इसे पीने या धुलाई जैसे कामों में इस्तेमाल किया जाता है। इसके उलट अमीर अपने निजी शौक और मौज-मस्ती के लिए ज्यादा पानी का इस्तेमाल करते हैं। स्वीमिंग पूल में नहाना, बागीचे में पानी देना, कारों को धुलना इनमें शामिल हैं। दौलतमंदों की लाइफस्टाइल शहरों में पानी की किल्लत की मुख्य वजह है। नेचर सस्टेनेबिलिटी नाम के जर्नल में यह स्टडी पब्लिश हुई है। यह स्टडी सामाजिक असमानाओं पर भी फोकस करती है। साथ ही इसके असर का पानी की किल्लत जैसे मुद्दे पर अध्ययन करती है। ऐसा कहा भी जाता है कि तीसरा विश्व युद्ध पानी के लिए होगा। शहरों में जिस तरह पानी की मारामारी बढ़ती जा रही है। उसमें यह भविष्यवाणी सच में तब्दील हो तो कोई ताज्जुब की बात नहीं है।
स्टडी के अनुसार, दौलतमंद अपने शौक पूरे करने के लिए पानी की ज्यादा खपत करते हैं। जैसे स्विमिंग पूल को पानी से भरना, बगीचों को पानी देना या अपनी कारों को धोने में पानी का इस्तेमाल किया जाता है। इस स्टडी की सह-लेखक रीडिंग यूनिवर्सिटी की हाइड्रॉलजिस्ट प्रफेसर हना क्लॉक ने कहा कि जलवायु परिवर्तन और जनसंख्या बढ़ोतरी का मतलब है कि बड़े शहरों में पानी ज्यादा मूल्यवान बन रहा है। लेकिन, हमने दिखाया है कि गरीबों को उनकी रोजमर्रा की जरूरतों के लिए पानी उपलब्ध कराने की सामाजिक असमानता सबसे बड़ी समस्या है।
क्लॉक के मुताबिक, दुनियाभर में 80 से ज्यादा बड़े शहरों पर पिछले 20 साल में पानी की किल्लत ने प्रतिकूल असर डाला है। इनमें लंदन, मियामी, बार्सिलोना, बीजिंग, टोक्यो, मेलबर्न, इस्तांबुल, काहिरा, मॉस्को, चेन्नई, जकार्ता, सिडनी, साओ पाउलो, मैक्सिको सिटी और रोम शामिल हैं। यहां पानी की किल्लत ने लोगों के लाइफस्टाइल को बदला है।
शोधकर्ताओं के अनुसार, केप टाउन को इसकी अत्यधिक असमानता और बेहद अलग समाज के कारण चुना गया था। इसके अलावा दक्षिण अफ्रीका की राजधानी 2015 से 2017 तक एक अभूतपूर्व जल संकट ‘डे जीरो’ के कारण विनाशकारी सूखे से पीड़ित थी। हालांकि, शोधकर्ताओं ने कहा कि केप टाउन को प्रभावित करने वाली समस्याएं कई अन्य शहरों के लिए आम थीं।